अष्ट सिद्धि और नव निधि के हिसाब से बसा है 'गुलाबी नगर', जानिए क्या है अष्ट सिद्धि और नव निधि ?

Edited By Chandra Prakash, Updated: 12 Nov, 2024 09:01 AM

pink city  is built according to ashta siddhi and nav nidhi

जयपुर, जिसे "गुलाबी नगर" भी कहा जाता है, एक अद्वितीय शहर है जो अपनी वास्तुकला और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है। जयपुर के निर्माण में वास्तुकला, ज्योतिष और धार्मिक तत्वों का विशेष योगदान रहा है। यह कहा जाता है कि जयपुर शहर को अष्ट सिद्धि और नव...

 

यपुर, 12 नवंबर 2024 । जयपुर, जिसे "गुलाबी नगर" भी कहा जाता है, एक अद्वितीय शहर है जो अपनी वास्तुकला और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है। जयपुर के निर्माण में वास्तुकला, ज्योतिष और धार्मिक तत्वों का विशेष योगदान रहा है। यह कहा जाता है कि जयपुर शहर को अष्ट सिद्धि और नव निधि के सिद्धांतों को ध्यान में रखकर बसाया गया था।

1. अष्ट सिद्धि
अष्ट सिद्धि वे शक्तियां हैं जिन्हें प्राप्त करके व्यक्ति असाधारण कार्य कर सकता है। यह सिद्धियां इस प्रकार हैं :

अणिमा - किसी भी वस्तु के आकार को अत्यधिक छोटा कर देना।
महिमा - किसी भी वस्तु के आकार को अत्यधिक बड़ा कर देना।
गरिमा - वजन को भारी बनाना।
लघिमा - वजन को हल्का कर देना।
प्राप्ति - कहीं भी पहुंचने की क्षमता।
प्राकाम्य - इच्छानुसार कार्य कर पाना।
ईशित्व - किसी पर भी नियंत्रण करने की शक्ति।
वशित्व - किसी को भी अपनी इच्छा के अनुसार नियंत्रित करना।

जब जयपुर का निर्माण हुआ, तो इन सिद्धियों के विचार को वास्तुकला में समाहित किया गया। शहर की बनावट और संरचना को इस प्रकार डिज़ाइन किया गया कि शहर हर दिशा से सुरक्षित, सुंदर और सामंजस्यपूर्ण लगे।

2. नव निधि
नव निधि वे नौ प्रकार की संपत्तियां हैं, जो जीवन में समृद्धि और सुख-शांति लाती हैं :

पद्म - धन और समृद्धि।
महापद्म - अत्यधिक संपत्ति।
शंख - शांति और सुख।
मकर - इच्छाओं की पूर्ति।
कच्छप - स्थिरता।
कुंड - समृद्ध जीवनशैली।
नील - स्वास्थ और खुशहाली।
मुखंड - शाश्वत ज्ञान।
खर्व - ऐश्वर्य और सुख।

इन नव निधियों के प्रतीकात्मक विचारों को भी शहर की योजना में समाहित किया गया है। जयपुर की विभिन्न इमारतें, महल और जलाशय इन निधियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

जयपुर की योजना और वास्तुकला

जयपुर का निर्माण महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने 1727 में किया था। इसे विद्याधर भट्टाचार्य नामक ब्राह्मण वास्तुकार ने डिज़ाइन किया था, जो कि स्वयं एक ज्योतिषी भी थे। उन्होंने शहर की योजना वास्तु शास्त्र और शिल्प शास्त्र के अनुसार बनाई, जिसमें 9 खंड या चौक-आधारित डिज़ाइन, जो नव निधियों का प्रतीक है। जबकि सड़कों का ग्रिड पैटर्न, जो अष्ट सिद्धियों का प्रतिनिधित्व करता है।

विशेषताएं

जलमहल और हवामहल जैसे स्थानों को ऐसे डिजाइन किया गया कि वे समृद्धि और वैभव के प्रतीक बनें।
सिटी पैलेस और जंतर मंतर जैसी संरचनाएं ज्ञान, शक्ति और सिद्धियों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
पिंक सिटी का गुलाबी रंग आनंद और सौहार्द्र का प्रतीक माना जाता है, जो शांति और सुख का प्रतीक है।
इस प्रकार, जयपुर एक ऐसा शहर है जो भारतीय संस्कृति, वास्तुकला और धार्मिक मान्यताओं का सम्मिश्रण है।

ये तो हो गई अष्ट सिद्धि और नव निधि की बात, अब आगे जयपुर शहर यानि की गुलाबी नगर की बसावट के इतिहास की बात कर लेते हैं । तो ब्रह्याण्ड में नौ नव निधि सिद्धान्त पर ग्रहों के वास्तु और शिल्प के तहत जयपुर का शिलान्यास विद्वान जगन्नाथ सम्राट की अध्यक्षता में 18 नवंबर, 1727 को गंगापोल दरवाजे से किया गया । जिसके कुल खर्चे की बात की जाए तो कुल 1084 रुपए का खर्चा हुआ ।  बता दें कि जयपुर की स्थापना की खुशी में सम्राट को हथरोई गांव की आठ बीवानाने दी गई । वहीं वास्तु व शिल्प के महाविज्ञानी पंडित विद्याधर चक्रवती और मिस्त्री आनन्द चीनमा जमीन के नवनिधि सिद्धांत के आधार पर चारों ओर 9 वर्ग मील परकोटा और 9 चौकड़ियों में नगर बसाने का प्रारूप बनाया।

जयपुर के तीनों चौपड़ों पर तीन देवियों को किया विराजित 
बताया जाता है कि प्रत्येक चौकड़ी 18 बीघा की और दुकानों की संख्या भी 162 रखी गई। जिसका जोड़ भी 9 आता है। अगर सड़कों की चौड़ाई की बात करें तो सड़कों की चौड़ाई भी क्रमशः 54 गज, 27 गज, 18 गज और 9 गज की गई। ऐसे में इन अंकों को जोड़ने पर भी इनका जोड़ 9 ही आता है। वहीं जयपुर की तीनों चौपड़ों पर तीन प्रमुख देवियों को विराजित किया गया । इसके तहत रामगंज चौपड़ को महाकाली का स्वरूप मानकर सुरक्षा के लिहाज से योद्धाओं को बसाया। तो बड़ी चौपड़ उर्फ माणक चौक पर महालक्ष्मी को स्थापित करके व्यापारियों को बसाया गया। खास बात तो ये है कि इसके बाजार का नामकरण भी जौहरी बाजार किया गया। जहां माणक चौक पर जयसिंह की पुत्री विचित्र कंवर ने लक्ष्मीनारायण का भव्य मंदिर भी बनवाया। वहीं छोटी चौपड़ की बात की जाए तो यहां मां सरस्वती को विराजमान कर इनके उपासक विद्वानों और ब्राह्मणों को पुरानी बस्ती व ब्रह्मपुरी में बसाया गया। साथ ही सूर्य रथ के सात घोड़ों और ब्रह्मांड के सप्त ऋषि मंडल की तर्ज पर सात दरवाजों का निर्माण हुआ। सातों दरवाजों में सुरक्षा के हिसाब से तांत्रिक प्रयोग के प्रतीक मारुति वीर और प्राचीरों पर काल भैरवनाथ की स्थापना की गई। लिहाजा नगर के निर्माण में विशेष रूप से वर्ग यानि चौकोर और वृत्त यानि गोलाकार को महत्त्व दिया गया।

सृष्टि के समय चक्र का द्योतक वृत्ताकार एवं पृथ्वी के मुताबिक दस लाइन दक्षिण से उत्तर एवं दस लाइन पूर्व से पश्चिम तक बनने वाली वर्गाकार आकृति के सिद्धांत को आमजन का निवास बनाने के लिए शुभ माना गया। चीनी नगरों में गोटाया, चांगगांग, बगदाद की तरह वृत्ताकार सिद्धांत को जनता के निवास के लिए अति उत्तम माना जाता है।

वहीं चौकड़ी सरहद को पर्वत का प्रतीक मानकर सिटी पैलेस का निर्माण कराया गया। बता दें कि राजगुरु रत्नाकर पौण्ड्रिक, जगन्नाथ सम्राट, दीवानआनन्द राम, कवि आत्माराम और विद्याधर चक्रवर्ती जैसे विद्वानों का नगर बसाने में विशेष योगदान रहा। त्रिपोलिया में नवाब साहब की हवेली जयपुर की घरी रखी गई। यानी यह जगह जयपुर के बीचोबीच स्थित । विद्याधर चक्रवती को रहने के लिए यह हवेली दी गई।

वर्ष 1723 के बाद जयसिंह चार साल तक दिल्ली के जयसिंहपुरा, मथुरा और आमेर में रहे। वर्ष 1725 में दिल्ली के जयसिंहपुरा में जंतर-मंतर बनाने के दौरान वे नया नगर बसाने के बारे में सोचने लगे। उन्होंने अपने शिकार करने की जगह नाहरगढ़ के नीचे तालकटोरा के पास जयनिवास उद्यान और बादल महल बनवाया। दीवान आनन्द राम की 16 जुलाई, 1726 की रिपोर्ट के मुताबिक द्रव्यवती नदी से चांदपोल होते हुए पानी की नहर निकाली गई।

हवामहल के सामने बना है भगवान कलकी का मंदिर 
इसी प्रकार हवामहल के सामने चौकड़ी रामचंद्रजी में भगवान रामचंद्र जी का सात चौक का भव्य मंदिर एवं कळ्युगी भगवान यानी भगवान कलकी का भी मंदिर बना हुआ है। चांदपोल बाजार में एक तरफ चौकड़ी पुरानी बस्ती दूसरी तरफ चौकड़ी तोपखाना देश है। पुरानी बस्ती में मंदिर और पूजा पाठ करने वाले ब्राह्मणों की हवेलियां है। छोटी चौपड़ के किशनपोल बाजार में चौकड़ी मोदीखाना है। इसमें सेठ साहूकारों की हवेलियां हैं। जोरावर सिंह दरवाजे के पास चौकड़ी गंगापोल, सूरजपोल से जुड़ा भाग तोपखाना हजूरी और इसके सामने चौकड़ी घाटगेट के अलावा चौकड़ी विश्वेश्वरजी और ब्रह्मपुरी चौकड़ी स्थापित की गईं। इन चौकड़ियों के माध्यम से ऐसी व्यवस्था की गई ताकि अलग- अलग पेशों के लोग अपने स्तर के मुताबिक रह सकें। यहां अपने कारोबार के हिसाब से मोहल्ले मशहूर थे। इनमें कमनीगरान, बरकन्दाजान, बाजदारान, पन्नीगरान, सिलावटान, चितावालान, बिसायतियान, जौहरियान, कसाईयान, तेलियान, ठठेरान, कुन्दीगरान आदि प्रमुख थे।


 

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