ज्योतिषीय गणनाओं का ध्यान रखते हुए नौ ग्रहों के आधार पर बसायी नौ चौकड़िया, जानिए, नौ ग्रह और नौ चौकड़ियों का क्या है संबंध ?

Edited By Chandra Prakash, Updated: 12 Nov, 2024 05:00 PM

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जयपुर शहर की योजना भारतीय ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के गहन सिद्धांतों पर आधारित है। महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने 1727 में जयपुर की नींव रखी और इसे डिज़ाइन करने में उनके सलाहकार और वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य ने मुख्य भूमिका निभाई। इस योजना में...

 

यपुर, 12 नवंबर 2024 । जयपुर शहर की योजना भारतीय ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के गहन सिद्धांतों पर आधारित है। महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने 1727 में जयपुर की नींव रखी और इसे डिज़ाइन करने में उनके सलाहकार और वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य ने मुख्य भूमिका निभाई। इस योजना में शहर को नौ ग्रहों के सिद्धांत और ज्योतिषीय गणनाओं का ध्यान रखते हुए बसाया गया, जिसमें "नौ चौकड़ियों" का महत्व है।

नौ ग्रह और नौ चौकड़ियों का संबंध

नौ चौकड़ी का डिज़ाइन: जयपुर शहर को नौ चौकड़ियों (खण्डों) में विभाजित किया गया है, जो कि शहर के केंद्र से लेकर बाहरी क्षेत्र तक फैली हुई हैं। यह नौ खंड नवग्रहों का प्रतिनिधित्व करते हैं :

सूर्य (Sun)
चंद्रमा (Moon)
मंगल (Mars)
बुध (Mercury)
बृहस्पति (Jupiter)
शुक्र (Venus)
शनि (Saturn)
राहु (North Node of Moon)
केतु (South Node of Moon)

नौ ग्रहों का प्रभाव : प्रत्येक चौकड़ी को एक ग्रह का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व माना जाता है, जो उस क्षेत्र के कार्य और विशेषताओं पर आधारित है। 

उदाहरण : सूर्य की चौकड़ी में शाही परिवार और सिटी पैलेस स्थित हैं, जो सत्ता और शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
बृहस्पति की चौकड़ी में मंदिर और धार्मिक स्थल हैं, जो ज्ञान और धर्म का प्रतीक है।
शनि की चौकड़ी में बाजार और व्यापार क्षेत्र स्थित हैं, जो मेहनत और व्यापारिक गतिविधियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

वास्तुकला और योजना का ज्योतिषीय आधार

जयपुर शहर की 9 चौकड़ियाँ या खंड गणितीय ग्रिड पैटर्न पर आधारित हैं, जिसमें सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती हैं।
यह मंडलाकार (Mandala) संरचना से प्रेरित है, जो हिंदू वास्तु शास्त्र और ज्योतिष का एक प्रमुख सिद्धांत है। इस मंडलाकार योजना में 9 भाग (3x3) के बराबर ग्रिड बनाया गया है, जो नवग्रहों के नौ शक्तियों को संतुलित करता है।
सड़कें और चौराहे भी इस योजना का हिस्सा हैं, जो ज्योतिषीय गणनाओं से निर्धारित किए गए थे।

मुख्य चौकड़ियां और उनके स्थल

सूरजपोल चौकड़ी - सूर्य का प्रतिनिधित्व, जिसमें शाही महल और सरकारी भवन आते हैं।
चांदपोल चौकड़ी - चंद्रमा का प्रतिनिधित्व, जिसमें धार्मिक और आध्यात्मिक स्थल हैं।
गंगापोल चौकड़ी - गंगा का प्रतीक, जो पवित्र जल और मंदिरों का क्षेत्र है।
किशनपोल चौकड़ी - व्यापारी वर्ग का क्षेत्र, जहां व्यापारिक गतिविधियाँ होती हैं।
जौहरी बाजार चौकड़ी - मंगल का प्रतिनिधित्व, जिसमें ज्वेलर्स और आभूषण बाजार हैं।
त्रिपोलिया बाजार चौकड़ी - शुक्र का प्रतिनिधित्व, जो सुंदरता और कला का प्रतीक है।

वास्तुकला की विशेषताएं

सभी चौकड़ियों में एक विशिष्ट वास्तुकला शैली है, जो उस क्षेत्र के प्रतिनिधि ग्रह के अनुसार बनाई गई है।
सड़कों की चौड़ाई और भवनों की ऊँचाई को विशेष गणनाओं के आधार पर तय किया गया, ताकि वास्तु दोष न हो और सभी क्षेत्रों में संतुलन बना रहे।
हवामहल, जलमहल, और जंतर मंतर जैसी संरचनाएँ भी इसी योजना का हिस्सा हैं, जो ज्योतिषीय और वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित हैं।

जयपुर एकमात्र ऐसा शहर है जो पूरी तरह से नवग्रह और वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों पर आधारित है। इसके निर्माण में भारतीय ज्योतिष, वास्तुकला और शास्त्रीय विज्ञान का अद्भुत मिश्रण देखने को मिलता है। इसीलिए यह शहर अपने आप में एक जीवंत ज्योतिषीय मण्डल है, जो संतुलन, सौंदर्य और समृद्धि का प्रतीक है।

गौरतलब है कि जयपुर की स्थापना एक आम शहर की स्थापना नहीं थी। महाराजा जयसिंह ने जयपुर की कल्पना करने से पहले हर पहलू पर विशेष रूप से ध्यान दिया। स्थापत्य से लेकर यहां की जलवायु, लोगों की जरूरत और सुविधाओं का पूरा-पूरा ध्यान रखा गया। क्या थे ये मापदंड, एक नजर इस पर डालेंगे । 

जगत में आकर क्या किया जो ना देख्या जयपुरिया कहावत विश्व प्रसिद्ध है। आज हम जिस गुलाबी नगर में निवास कर रहे हैं। क्या आप जानते हैं कि इस सुन्दर नगर का निर्माण किस तरह हुआ था। इतिहास, कला, संस्कृति तथा मंदिरों की दृष्टि से समृद्ध इस नगर का निर्माण जयपुर के नरेश सवाई जयसिंह ने करवाया था।

जयपुर चतुष्कोणीय भूमि के टुकड़े पर बसा हुआ है। शहर के लिए यह स्थान भवन निर्माण योजना, बरसाती पानी के निकास, जल की उपलब्धता, सामरिक सुरक्षा, भवन निर्माण सामग्री, विशेषकर पत्थर की उपलब्धि, चारों ओर आवागमन के साधनों की प्रचुरता, भावी विकास की संभावनाओं तथा प्राकृतिक विविधता आदि को ध्यान में रखकर चुना गया। जयसिंह ने इस स्थान का चयन करते समय इस बात का भी ध्यान रखा कि नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक सुविधाएं भी आसानी से प्राप्त हो सकें। आरंभ से ही पानी निकासी की ऐसी व्यवस्था की गई कि वर्षा का पानी कहीं न ठहरे।

मध्यकालीन भारत का सुन्दरतम और सुनियोजित शहर है जयपुर 

निर्माण से पहले पूरा नक्शा बनाया गया। नाहरगढ़ की पहाड़ियों से नजर डालने पर यह प्रमाणित हो जाता है, कि स्थापत्य एवं शिल्प कला की दृष्टि से जयपुर मध्यकालीन भारत का सुन्दरतम और सुनियोजित शहर है। यहां से सभी मार्ग एक सीध में तथा समसूत्र में बनाए गए हैं। ये मार्ग एक-दूसरे को 90 डिग्री के कोण पर काटते हैं मुख्य सड़क की चौड़ाई 54 गज तथा लम्बाई दो मील चालीस गज है, जो पूर्व से पश्चिम की ओर जाती है। अन्य गलियों तथा सड़कों की चौड़ाई क्रमशः 27 गज, 18 गज है। राजमार्ग को तीन मुख्य सड़कें विभाजित करती हैं। एक सड़क राजमहल द्वार से निकलकर त्रिपोलिया गेट तक जाती है। यह सड़क दूसरे तथा तीसरे बड़े मार्गों के बीच बने हुए रिहायशी इलाकों को दो भागों में बांटती है। इस तरह सड़कों के आपस में एक-दूसरे को काटने के कारण यह क्षेत्र नौ बराबर भागों में बंट गया है। जिन्हें चौकड़ी कहा जाता है।

इन नौ चौकड़ियों की संख्या धन-समृद्धि के देवता कुबेर की नौ निधियों के प्रतीक के रूप में स्वीकार की गई। उत्तर-पश्चिमी छोर में आमेर की पहाड़ियों से दब जाने के कारण आठ चौकड़ियों का निर्माण चतुष्कोण के भीतर हुआ। एक चौकड़ी को उसके दक्षिण में बनाया गया। उत्तरी हिस्से को सरहद चौकड़ी का नाम दिया गया, जो सुमेरू पर्वत का प्रतीक बन सर्वोच्च मानी गई। शहर की अन्य चौकड़ियों के नाम चौकड़ी रामचन्द्र जी, चौकड़ी गंगापोल, तोपखाना हजूरी, घाट दरवाजा, चौकड़ी विश्वेश्वर जी, चौकड़ी मोदीखाना, तोपखाना देश और पुरानी बस्ती (ब्रह्मपुरी) रखे गए। प्रत्येक चौकड़ी छोटे-छोटे चौकोर मोहल्लों से बनी हुई थी। इन मोहल्लों के नाम उनमें चलने वाले व्यवसायों के नाम पर रखे गए थे।

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