मेवात में खाकी की खतरनाक करामात–पुलिसिंग या पिलकिंग ?

Edited By Chandra Prakash, Updated: 03 Aug, 2025 07:18 PM

khaki s dangerous feat in mewat policing or pilking

मेवात क्षेत्र का नाम सुनते ही अगर आपके ज़ेहन में पुलिस और अपराध की कशमकश चलती है, तो आप सही ट्रैक पर हैं। लेकिन अगर आप सोचते हैं कि पुलिसिंग का मतलब है कड़क ड्यूटी, अनुशासन और नियमों की पालना – तो जनाब, आप शायद भिवाड़ी पुलिस जिले की रचनात्मकता से...

भिवाड़ी/अलवर, 3 अगस्त 2025 । मेवात क्षेत्र का नाम सुनते ही अगर आपके ज़ेहन में पुलिस और अपराध की कशमकश चलती है, तो आप सही ट्रैक पर हैं। लेकिन अगर आप सोचते हैं कि पुलिसिंग का मतलब है कड़क ड्यूटी, अनुशासन और नियमों की पालना – तो जनाब, आप शायद भिवाड़ी पुलिस जिले की रचनात्मकता से वाकिफ नहीं हैं।

भिवाड़ी जिले की शेखपुरा थाना  क्षेत्र में एक ऐसा दृश्य सामने आया, जिसने सोशल मीडिया को हिला कर रख दिया। नहीं, इस बार किसी बदमाश को पकड़ते हुए नहीं, बल्कि फरियादी महिला को बैठाकर ले जाते हुए। अब आप सोचेंगे कि इसमें क्या खास बात है? तो जनाब, खास बात ये है कि महिला न गाड़ी में थी, न एंबुलेंस में, न सरकारी वाहन में – बल्कि एक मोटरसाइकिल पर थी, जिसे चला रहे थे एक खाकी वर्दीधारी साहब और पीछे बैठे थे एक और पुलिसकर्मी। अब हुआ यूँ कि महिला हो गई बीच में।

मतलब —आगे पुलिस, पीछे पुलिस और बीच में महिला। अब ये क्या सीन है? पुलिसिंग है या "Police Ride – Special Edition for Complaint Redressal"?

इस पूरे दृश्य की जो तस्वीरें और वीडियो सामने आईं, वो किसी थ्रिलर फिल्म का ट्रेलर लग रही थीं। कहीं से लगे कि महिला को सुरक्षा दी जा रही है, तो कहीं से लगे कि पुलिस खुद ही स्क्रिप्ट राइटर, डायरेक्टर और एक्टर बन चुकी है। लोगों ने सोशल मीडिया पर चुटकी ली – “इससे अच्छा होता पुलिस वाले महिला को स्कूटर पर बैठाते और खुद पैदल चलते, कम से कम स्टंटबाजी से तो बच जाते!”

लेकिन साहब, ये भिवाड़ी पुलिस जिला है – यहां नियमों से ज्यादा चर्चाओं का पालन होता है। यह वही ज़िला है जो कभी आतंकवाद से जुड़े मॉड्यूल पकड़ने के दावे करता है और कभी खुद की “टाइगर की जासूस में उलझ जाता है। मतलब हर हफ्ते एक नया थ्रिलर प्लॉट।

अब सवाल ये है कि आखिर एक फरियादी महिला को थाने ले जाने के लिए पुलिस के पास गाड़ी क्यों नहीं थी? क्या पूरी व्यवस्था सिर्फ चालान और फोटो खिंचवाने के लिए ही बनी है? या फिर सरकारी संसाधनों की हालत ऐसी हो चुकी है कि एक महिला को sandwich बनाकर बाइक पर बैठाना ही एकमात्र विकल्प रह गया है?

वैसे, हो सकता है पुलिस का तर्क ये हो कि "कर्तव्य सबसे पहले", लेकिन सवाल ये भी है कि क्या ये कर्तव्य मर्यादा और शालीनता के दायरे में नहीं आता? अगर महिला के परिवार का कोई सदस्य या कोई महिला पुलिसकर्मी साथ होती, तो ये दृश्य अलग होता। पर यहां तो ऐसा लग रहा है जैसे "करना है तो ऐसे ही करना है", बाकी जो देख रहा है, देखता रहे।

इस पूरे घटनाक्रम को देखकर कुछ बुजुर्ग बोले — "बेटा पहले के ज़माने में खाकी देखकर डर लगता था, अब खाकी देखकर हँसी आती है।" कुछ नौजवान बोले — “ये तो ‘खाकी विथ कॉमेडी’ चल रही है”, और कुछ पत्रकार बोले — “अब हमें भी डर लगने लगा है कि अगली बार खबर के लिए इंटरव्यू लेने जाएं और कोई पुलिसिया बाइक का रोल ऑफर कर दे।”

भिवाड़ी पुलिस का ये ‘जुगाड़ मॉडल’ सिर्फ एक घटना नहीं है, ये पुलिस व्यवस्था की सोच, महिला सुरक्षा की परिकल्पना और संवेदनशीलता की परीक्षा है। सवाल सिर्फ महिला के साथ व्यवहार का नहीं है, सवाल नज़रिए का है। क्या पुलिस को यह भी समझाना पड़ेगा कि शिकायत करने आई महिला कोई 'सवारी' नहीं, एक नागरिक है, जिसकी गरिमा का सम्मान करना उनके प्रशिक्षण का हिस्सा होना चाहिए?

आज जब पूरा देश महिला सुरक्षा को लेकर गंभीर है, जब निर्भया जैसे केस के बाद पुलिसिंग में संवेदनशीलता को बढ़ाने की बातें होती हैं – तब भिवाड़ी पुलिस का यह सैंडविच मॉडल किस दिशा की ओर इशारा करता है?

अंत में, इस पूरे दृश्य को देखकर बस यही कहा जा सकता है —"खाकी अब सिर्फ सुरक्षा नहीं, स्क्रिप्ट भी लिखती है, मोटरसाइकिल पे कहानी नहीं, पुलिसिंग की कॉमेडी चलती है!"

कृपया गंभीरता को हल्के में न लें और हल्के पलों में गंभीरता का बोझ न डालें। पुलिस से उम्मीद है कि अगली बार महिला को शिकायत दर्ज कराने से पहले स्टंट सीन के लिए मानसिक रूप से तैयार रहने की हिदायत जरूर दें।

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