Edited By Kuldeep Kundara, Updated: 29 Dec, 2024 06:35 PM
राजस्थान की राजनीति में इन दिनों हलचल तेज है। प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा ने जोर पकड़ लिया है। हाल ही में वसुंधरा राजे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच दिल्ली में हुई...
हनुमानगढ़ | राजस्थान की राजनीति में इन दिनों हलचल तेज है। प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा ने जोर पकड़ लिया है। हाल ही में वसुंधरा राजे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच दिल्ली में हुई मुलाकात ने इन अटकलों को और बल दिया है। इस मुलाकात के बाद से राजनीतिक विश्लेषकों के बीच यह सवाल उठ रहा है कि क्या जेपी नड्डा के बाद वसुंधरा को कमान सौंपने की तैयारी चल रही है। इसी बीच, शनिवार को प्रदेश के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने भी दिल्ली प्रवास के दौरान वसुंधरा राजे के निवास सिंधिया विला में उनसे भेंट की। इन घटनाक्रमों से यह संकेत मिल रहा है कि प्रदेश में शीघ्र ही कुछ नया होने वाला है। वसुंधरा राजे का नाम न केवल राजस्थान की राजनीति में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी एक सशक्त नेता के रूप में जाना जाता है। अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में उन्होंने पार्टी को मजबूत आधार दिया और राज्य में भाजपा को जन-जन तक पहुंचाया। प्रधानमंत्री से उनकी मुलाकात ने यह संदेश दिया है कि पार्टी उन्हें एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपने पर विचार कर रही है। राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उनकी संभावित नियुक्ति भाजपा के महिला नेतृत्व को एक नई दिशा दे सकती है। यदि वसुंधरा राजे राष्ट्रीय स्तर पर कोई भूमिका निभाती हैं, तो इसका सीधा असर राजस्थान की राजनीति पर पड़ेगा। अब देखना यह है कि यह चर्चाएं भविष्य में कोई साकार रूप में भी लेती हैं या मात्र चर्चाएं बनकर ही रह जाती हैं।
अब फैसले के असर का आंकलन !
प्रदेश की सरकार ने करीब एक साल बाद पिछली सरकार के वक्त बने नए जिलों में से नौ जिले और तीन संभाग खत्म कर दिए हैं। सरकार ने वक्त लंबा लिया है लेकिन फैसला कड़ा लिया है। पिछली सरकार वाले अब विपक्ष में हैं तो सरकार को इस फैसले से कड़ी चुनौती झेलनी पड़ेगी। अब सरकार के फैसले से पड़ने वाले असर का गुणा-भाग किया जा रहा है। पिछली सरकार द्वारा बनाए गए 17 जिलों में से सरकार ने नौ नए जिले और तीन संभाग खत्म कर दिए हैं। चर्चा यह हो रही है कि इस फैसले का आधार क्या रहा है? ज्यादातर यह कयास लगाए जा रहे हैं कि जिले खत्म करने का फैसला भी राजनीतिक आधार पर हुआ है। सरकार ने अपनी पार्टी की मजबूत स्थिति वाले जिलों को नहीं छेड़ा है लेकिन जहां विपक्ष वाली पार्टी चुनाव में जीती या मजबूत दिख रही है। वहां जिले और संभाग खत्म किए गए हैं। इस फैसले में सरकार के नेताओं की पावर भी साफ दिखी है। पुराने जिला मुख्यालय से थोड़ी दूरी पर स्थित डीग जिले को बचाकर मुखिया ने अपने इलाके को सौगात दी है तो सरकार के उप मुखिया अब लगातार कमजोर दिख रहे हैं। दिल्ली में हुए विवाद से निपटने के बाद उन्होंने जिलों के रिव्यू को लेकर बनी कमेटी के संयोजक पद से हटने का फैसला कर लिया था। अब उनके खुद के विधानसभा क्षेत्र के जिले को खत्म कर दिया गया है। दूसरी तरफ पार्टी में एक फायर ब्रांड विधायक बाबा उप मुखिया के जिले के लेवल जितने ही नए जिले को बचाने में कामयाब हो गए जबकि इन दोनों ही जिलों को खत्म करने की सिफारिश पुलिस मुख्यालय ने कर दी थी। कई अन्य जगहों पर भी पार्टी नेताओं ने अपनी पावर दिखाई और जिलों को बचा लिया है। विपक्ष वाली पार्टी को सर्द मौसम में गर्म मुद्दा मिल गया है। सरकार के पूर्व मुखिया और पार्टी प्रधान दोनों ही आक्रामक दिखे हैं और सरकार के फैसले के बाद कड़ी प्रतिक्रिया दी है। जाहिर है अब विपक्ष वाली पार्टी इस मसले पर बड़ा आंदोलन करेगी तो सरकार के लिए चुनौती होगी। सरकार के मुखिया ने वक्त तो जरुर लिया है लेकिन फैसला कड़ा लेकर उन्होंने मजबूती का संदेश देने की कोशिश की है।
थानेदार भर्ती पर आखिर कौन मेहरबान?
नकल की वजह से विवादों में आई थानेदारों की भर्ती रद्द करने की सिफारिश सरकार के कई विभागों की तरफ से हो चुकी है। हाई कोर्ट ने भी इस मामले में सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है और नए थानेदारों की ज्वाइनिंग पर रोक लगा दी है। गृह मंत्रालय की सिफारिश के बाद पिछले हफ्ते के आखिर में हुई कैबिनेट की मीटिंग में इस भर्ती को रद्द करने का फैसला होने की उम्मीद थी लेकिन सरकार ने मीटिंग के बाद प्रेस ब्रीफिंग में बताया की भर्ती का मसला हाईकोर्ट में लंबित है इसलिए इस पर कैबिनेट में फैसला नहीं हो सका। दूसरी तरफ विपक्ष सरकार पर इस फैसले की टालमटोल का आरोप लगा रहा है। सरकार के ही एक काबिना मंत्री इस भर्ती को रद्द करने की मांग कई बार कर चुके हैं। अब क्षेत्रीय दल वाले प्रदेश के एक सांसद ने सरकार के मुखिया के कमजोर होने का आरोप लगाया है। सांसद ने कहा है कि सरकार के कई मंत्री और आइएएस इस भर्ती को रद्द नहीं करना चाहते। उन्होंने इसकी वजह भी बड़ी रोचक बताई है ।सांसद ने आरोप लगाया है कि कुछ मंत्रियों और आइएएस के मित्र भी थानेदार बने हैं इसलिए वे इस भर्ती को बचाना चाहते हैं। कैबिनेट मीटिंग में फैसला नहीं होने के बाद अब एक बार यह फैसला टल गया है लेकिन सरकार को इस भर्ती को लेकर रुख स्पष्ट करना होगा। प्रदेश के कई युवा भी इस भर्ती को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। जिस तरह से जिले रद्द करने का फैसला लिया गया है उसी तर्ज पर भर्ती का फैसला होना तय है।
संभाग से दो मंत्री विवादों में ?
बीकानेर संभाग से एक केंद्रीय मंत्री और प्रदेश की सरकार में कैबिनेट मंत्री इन दिनों विवादों में हैं । केंद्र वाले मंत्री ने कथित रूप से मीराबाई के खिलाफ विवादित बयान दे दिया था । इस बयान के बाद राजपूत समाज और मीरा भक्तों में आक्रोश फैल गया था । हालांकि मंत्री ने उसी दिन वीडियो जारी कर माफी मांग ली थी। मंत्री की माफी के बाद यह मामला अब शांत नजर आ रहा है। दूसरी तरफ सूबे की सरकार में खानपान की आपूर्ति वाला महकमा संभाल रहे संभाग के एक मंत्री अपने विधानसभा क्षेत्र में कब्जे तुड़वाने को लेकर विवादों में हैं । एक गांव में सड़क बनाने को लेकर कई मकान तोड़े गए । आरोप है कि उस लिस्ट में पार्टी और पार्टी के वैचारिक संगठन के एक पदाधिकारी का मकान भी था। इस पदाधिकारी ने सोशल मीडिया पर खुले तौर पर मंत्री की आलोचना की है। चर्चा है कि मंत्री की शिकायत राजधानी से लेकर दिल्ली तक की गई है। पार्टी पदाधिकारी और वैचारिक संगठन के दबाव में मंत्री पर एक्शन हो सकता है लेकिन एक्शन से पहले पूरा फीडबैक जुटाया जा रहा है। हालांकि कैबिनेट मीटिंग में इन्हीं मंत्री को प्रेस ब्रीफिंग का जिम्मा देकर सरकार ने कुछ हद तक सब कुछ ठीक होने का संकेत दिया है। एक ही संभाग के दो मंत्रियों के विवादों में आने की चर्चा राजनीतिक गलियारों में खूब हो रही है।