Edited By Chandra Prakash, Updated: 07 Sep, 2024 05:01 PM
कम उम्र में लंबा संघर्ष और सियासत की राहों पर चलने वाले लोगों में भारतीय राजनीति में सचिन पायलट का नाम अगली पंक्ति के नेताओं में शामिल है । सचिन पायलट 7 सितंबर 2024 को अपना 47वां जन्मदिन मना रहे हैं । इस मौके पर उनके समर्थक राज्यभर में गौ-सेवा...
जयपुर, 7 सितंबर 2024 (विशाल सूर्यकांत) । कम उम्र में लंबा संघर्ष और सियासत की राहों पर चलने वाले लोगों में भारतीय राजनीति में सचिन पायलट का नाम अगली पंक्ति के नेताओं में शामिल है । सचिन पायलट 7 सितंबर 2024 को अपना 47वां जन्मदिन मना रहे हैं । इस मौके पर उनके समर्थक राज्यभर में गौ-सेवा संकल्प दिवस के रूप में इसे मना रहे हैं। कार्यकर्ता प्रदेशभर में गौशालाओं में चारा वितरण करेंगे और कई जिलों में रक्तदान शिविर आयोजित किए जा रहे हैं । लेकिन इस बार पायलट जयपुर में कोई बड़ा जलसा नहीं कर रहे हैं। असल में, पायलट कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में इस दौर पर खड़े हैं, जहां वो सत्ता के हाशिए से फिर राजस्थान कांग्रेस की राजनीति के मध्य में आ सकते हैं । इसीलिए वो नहीं चाहते हैं कि इस मौके पर किसी तरह का शक्ति प्रदर्शन कर गहलोत, डोटासरा या टीकाराम जूली के समर्थकों को सक्रिय किया जाए । सत्ता जाने के बाद कांग्रेस कार्यकर्ता अभी भी भावी नेता की खोज में है ।
दरअसल, कांग्रेस में अभी गहलोत का दौर गया नहीं और पायलट का दौर पूरी तरह से आया नहीं । संक्रमणकाल से गुजरती कांग्रेस की राहों में पायलट, अब आसमानी उड़ान से बच रहे हैं । पायलट के पिता, राजेश पायलट, एक प्रतिष्ठित कांग्रेस नेता और केंद्रीय मंत्री थे। सचिन का राजनीतिक करियर उनके पिता से प्रेरित था, लेकिन उन्होंने अपनी शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया। पायलट की प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के एयर फोर्स बाल भारती स्कूल में हुई। इसके बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उच्च शिक्षा के लिए सचिन ने अमेरिका का रुख किया और पेंसिलवेनिया विश्वविद्यालय के व्हार्टन स्कूल से प्रबंधन में डिग्री हासिल की। सचिन पायलट की शिक्षा ने उन्हें एक व्यापक दृष्टिकोण और वैश्विक सोच प्रदान की, जो भारतीय राजनीति में उन्हें एक अनोखा नेता बनाती है। उन्होंने अमेरिका में पत्रकारिता के क्षेत्र में भी छह महीने तक काम किया, लेकिन राजनीति उनके जीवन का असली ध्येय था और वे जल्द ही भारतीय राजनीति में सक्रिय हो गए । राजनीति, पायलट के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी, क्योंकि पिता राजेश पायलट के बाद उनकी माता रमा पायलट भी राजनीति में खासी सक्रिय रही हैं, वे विधायक और सांसद रहीं । 11 जून 2000 को एक सड़क हादसे में राजेश पायलट की मृत्यु हो गई। इस घटना के बाद, 23 साल के सचिन पायलट ने राजनीति की ओर कदम बढ़ाया। अपने पिता की मृत्यु के बाद, सचिन को राजनीति में अपने परिवार की विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी मिली।
वहीं 2002 में, सचिन पायलट ने कांग्रेस पार्टी का दामन थामा। सिर्फ एक साल के भीतर, वे सक्रिय राजनीति में आए और 2004 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान के दौसा संसदीय क्षेत्र से सांसद चुने गए। तब उनकी उम्र मात्र 26 वर्ष थी और वे सबसे कम उम्र के सांसद बने। सचिन पायलट का राजनीतिक करियर एकदम से ऊंचाइयों पर पहुंचा। 2009 में, जब उनकी उम्र केवल 32 वर्ष थी, उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया गया। उन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी और दूरसंचार मंत्रालय में अपनी सेवाएं दीं । इसके बाद, 2014 में, उन्हें राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने 36 साल की उम्र में इस पद को संभाला, जो राज्य की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।
2018 का चुनाव और उप-मुख्यमंत्री का पद
2018 के राजस्थान विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की बड़ी जीत के पीछे सचिन पायलट का महत्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने प्रदेश में पार्टी को मजबूत किया और कांग्रेस को सत्ता में वापसी दिलाई । इस जीत के बाद, उन्हें राजस्थान का उप-मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। हालांकि, मुख्यमंत्री पद को लेकर अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच तनाव की खबरें भी सामने आईं। पायलट को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन जल्द ही दोनों नेताओं के बीच सियासी खींचतान शुरू हो गई।
जब गहलोत से अदावत में उलझे पायलट
राजस्थान की सियासत में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच मतभेद लंबे समय से रहे हैं । 2020 में, यह मतभेद खुलकर सामने आया जब सचिन पायलट ने गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत कर दी। उन पर आरोप लगाए गए कि वे सरकार गिराने की साजिश कर रहे हैं । इसके बाद, उन्हें उप-मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया। हालांकि, सचिन पायलट ने इन आरोपों से इनकार किया और कांग्रेस पार्टी के प्रति अपनी वफादारी जताई। इस घटना के बाद, पायलट का राजनीतिक करियर एक मुश्किल दौर में चला गया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
कांग्रेस में वापसी और राष्ट्रीय महासचिव की भूमिका
सचिन पायलट ने पार्टी में अपनी वापसी कराई और अब वे कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव के पद पर हैं । इस नई भूमिका के तहत, उन्हें छत्तीसगढ़ का प्रभार दिया गया है। उन्होंने पार्टी के अंदर अपनी स्थिति को मजबूत किया है और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है।
व्यक्तिगत जीवन
अगर व्यक्तिगत जीवन की बात करें तो सचिन पायलट का व्यक्तिगत जीवन भी चर्चा का विषय रहा है । 15 जनवरी 2004 को उन्होंने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला की बेटी सारा अब्दुल्ला से शादी की । उनके दो बेटे हैं । हालांकि, लगभग दो दशक बाद, 2023 में, सचिन पायलट और सारा अब्दुल्ला ने अलग होने का फैसला किया।
सेना में शामिल होने का सपना
सचिन पायलट का सपना सिर्फ राजनीति में सफल होना नहीं था, वे अपने पिता की तरह सेना में भी शामिल होना चाहते थे। 6 सितंबर 2012 को, सचिन पायलट प्रादेशिक सेना में अधिकारी के रूप में नियुक्त होने वाले पहले केंद्रीय मंत्री बने । उन्हें कैप्टन पायलट के नाम से जाना जाता है। यह उनके लिए एक व्यक्तिगत उपलब्धि थी, जो उनके पिता और दादा के नक्शेकदम पर चलते हुए हासिल की गई थी।
सचिन पायलट ने कहा था, “सेना में शामिल होने की मेरी इच्छा बहुत लंबे समय से थी क्योंकि मैं अपने पिता और दादा की तरह सशस्त्र बलों से जुड़ना चाहता था। मैं इस परिवार का हिस्सा बनकर सम्मानित महसूस कर रहा हूँ।”
मौजूदा सियासी स्थिति
राजस्थान की राजनीति में सचिन पायलट का कद अब भी बड़ा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उन्हें कई सियासी झटके भी लगे हैं। पायलट और गहलोत के बीच के सियासी मतभेद अब भी कायम हैं। हाल ही में, जब सचिन पायलट के जन्मदिन पर जयपुर में बड़ा जलसा नहीं हुआ, तो राजनीतिक गलियारों में चर्चा होने लगी कि इसके पीछे पायलट का नया सियासी रणनीति हो सकता है। सियासी पंडितों का मानना है कि सचिन पायलट अब पार्टी के अंदर अपने विरोधियों से टकराव नहीं चाहते हैं। वे पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद पर होने के कारण कांग्रेस के आलाकमान के सामने अपनी छवि को बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं। पायलट अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच अब भी लोकप्रिय हैं, और यही कारण है कि उनका जन्मदिन प्रदेशभर में बड़े उत्साह के साथ मनाया जा रहा है ।