सिंधु जल संधि रद्द होने से हरियाली से लहलहाएगी हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर क्षेत्र की जमीनें

Edited By Ishika Jain, Updated: 24 Apr, 2025 05:39 PM

greenery will benefit from cancellation of indus water treaty

भारत सरकार ने 1960 में पाकिस्तान के साथ हुए ऐतिहासिक सिंधु जल समझौते को औपचारिक रूप से रद्द कर दिया है। यह निर्णय केवल कूटनीतिक नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वाभिमान और सुरक्षा की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

बालकृष्ण तनेजा : हनुमानगढ़। भारत सरकार ने 1960 में पाकिस्तान के साथ हुए ऐतिहासिक सिंधु जल समझौते को औपचारिक रूप से रद्द कर दिया है। यह निर्णय केवल कूटनीतिक नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वाभिमान और सुरक्षा की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। 

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकियों द्वारा 27 पर्यटकों की नृशंस हत्या ने देश को झकझोर कर रख दिया। इस वीभत्स हमले के विरोधस्वरूप केंद्र सरकार ने जो सख्त कदम उठाए उनमें सबसे उल्लेखनीय है सिंधु जल संधि को समाप्त कर देना। यह संधि वर्ष 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी। जिसके तहत छह प्रमुख नदियों को दो हिस्सों में बांटा गया था। पूर्वी नदियां रावी, ब्यास और सतलुज भारत को मिलीं। जबकि पश्चिमी नदियां सिंधु, झेलम और चिनाब पाकिस्तान के अधीन रहीं। समझौते की सबसे बड़ी विडंबना यह थी कि भारत को अपनी ही नदियों के जल उपयोग पर बेतुकी बंदिशों का पालन करना पड़ा। 

पाकिस्तान जिसने आतंकवाद को अपने देश की नीति बना रखा है, पिछले छह दशकों से भारत के धैर्य की परीक्षा लेता रहा और भारत संयम दिखाता रहा। परंतु इस बार देश ने संयम नहीं, साहस का रास्ता चुना। समझौता समाप्त होते ही अब वह अधिशेष जल जो पंजाब होते हुए पाकिस्तान की ओर बह जाता था, भारत के उपयोग में आ सकेगा। खासतौर से राजस्थान के सीमावर्ती जिलों हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगरको इसका प्रत्यक्ष लाभ मिलेगा। 

पंजाब के हरिके बैराज से निकलने वाली इंदिरा गांधी नहर प्रणाली इन दोनों जिलों के लिए जीवनरेखा समान है। हिमाचल प्रदेश और पंजाब से सतलुज और ब्यास नदियां होकर हरिके पहुंचती हैं, जहां से यह नहर आगे राजस्थान की प्यास बुझाने चल पड़ती है। हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर के किसानों की खेती इस जलस्रोत पर आश्रित है। सिंधु जल समझौते के कारण कई बार यह अधिशेष जल पाकिस्तान को जाता रहा और यहां किसान आसमान की ओर देखता रहा। अब, जब संधि रद्द हो चुकी है तो भारत को न केवल जल पर पूर्ण अधिकार मिलेगा बल्कि वह इस जल को आवश्यकता अनुसार भंडारण, पुन:वितरण और विस्तार योजनाओं में प्रयोग कर सकेगा। यह निर्णय खासतौर से राजस्थान के लिए एक जल क्रांति की शुरुआत बन सकता है। सीमावर्ती क्षेत्रों में अब रणनीतिक जल नियंत्रण भी भारत के पक्ष में रहेगा जिससे न केवल सिंचाई बल्कि सुरक्षा दृष्टिकोण से भी संतुलन बनेगा। भारत ने इस बार केवल जवाब नहीं दिया, बल्कि संदेश दिया है अब न तो पानी बहाया जाएगा, न ही खून। और यदि कोई हमें चुनौती देगा तो हम चुप नहीं रहेंगे। हम दिशा भी बदलेंगे और धारा भी।

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