भटनेर के झरोखे से : पार्टी प्रधान के ठुमके और युवा नेता की दूरी !

Edited By Chandra Prakash, Updated: 27 Oct, 2024 02:31 PM

from bhatner s window party chief s dance and young leader s distance

सूबे में विधानसभा की सात सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं। उपचुनाव के प्रचार में विपक्ष वाली पार्टी के प्रदेश प्रधान अपनी पार्टी की तरफ से पूरा मोर्चा संभाले हुए हैं। टिकट वितरण में पार्टी प्रधान की एकतरफा चली। कई नेताओं की नाराजगी के बाद भी उन्होंने...

नुमानगढ़, 27 अक्टूबर 2024 । सूबे में विधानसभा की सात सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं। उपचुनाव के प्रचार में विपक्ष वाली पार्टी के प्रदेश प्रधान अपनी पार्टी की तरफ से पूरा मोर्चा संभाले हुए हैं। टिकट वितरण में पार्टी प्रधान की एकतरफा चली। कई नेताओं की नाराजगी के बाद भी उन्होंने कड़े फैसले लिए। चुनाव प्रचार की सभाओं में पार्टी प्रधान जमकर सत्ता वाली पार्टी पर हमला बोल रहे हैं। पार्टी प्रधान अपने चिर-परिचित  अंदाज में गमछा हिलाकर ठुमके लगा खूब प्रसिद्ध हो रहे हैं। एक सभा में सरकार के पूर्व मुखिया के आग्रह पर उन्होंने गमछा लहराकर डांस किया। इसी बीच पूरे चुनाव प्रचार से अब तक पार्टी के युवा नेता दूरी बनाए हुए हैं। दिलचस्प बात यह है कि जिन दो सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं वहां से विधायक रहते सांसद बने दोनों नेता युवा नेता के खेमे के हैं। अब इन सांसदों की पसंद से ही इन सीटों पर टिकट दिए गए हैं लेकिन युवा नेता अभी तक वहां नहीं पहुंचे हैं। सरकार के पूर्व मुखिया ने दोनों नवनिर्वाचित सांसदों का उत्साह बढ़ाकर उन्हें बड़ा नेता बताया है। यह दौर अब सूबे की सियासत में नया रंग भरने वाला है। सरकार के पूर्व मुखिया के पार्टी में ही धुर विरोधी रहे दोनों सांसद अब उनके गुणगान कर रहे हैं। जाहिर है यह माहौल अब पूर्व मुखिया को और मजबूती प्रदान करेगा। युवा नेता अपने प्रभार वाले राज्य में वक्त दे रहे हैं। वैसे पूर्व मुखिया और युवा नेता दोनों को ही महाराष्ट्र चुनाव में ऑब्जर्वर की जिम्मेदारी दी जा चुकी है। पूर्व मुखिया तो महाराष्ट्र पहुंच भी चुके हैं।

टिकट वितरण और डैमेज कंट्रोल में मुखिया ने छोड़ी छाप !
विधानसभा उपचुनाव में सत्ता वाली पार्टी की तरफ से सरकार के मुखिया इस बार खूब सजग नजर आ रहे हैं। टिकट वितरण में पूरी तरह मुखिया की पसंद को तरजीह है दी गई है। हालांकि फैसला दिल्ली से हुआ है और इसमें बड़े नेताओं की राय शामिल है। टिकट वितरण में पार्टी से नाराज चल रहे बाबा को साधकर एक बड़ा मैसेज दिया गया है। इसी तरह पार्टी में बगावत पर उतरे नेताओं को समय रहते मनाने में मुखिया ने बड़ी कामयाबी हासिल की है। नामांकन से पहले ही बाकी नेताओं को राजधानी बुलाकर उन्हें संतुष्ट किया गया। यह अपने आप में बड़ी पहल है। लोकसभा चुनाव में इस मामले में विफल रहने पर मुखिया को दिल्ली की नाराजगी का सामना करना पड़ा था। खासकर सीमावर्ती इलाके की एक लोकसभा सीट पर युवा विधायक को साधने में नाकाम रहने पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। अब एक क्षेत्रीय पार्टी के सांसद वाली सीट पर पार्टी ने पिछले चुनाव में बागी रहे नेता को साथ ले लिया है। इस सीट पर पार्टी की स्थिति काफी मजबूत बताई जा रही है। मुखिया की सजगता के चलते पार्टी को उपचुनाव में स्कोर बढ़ने की उम्मीद है। सरकार के मुखिया को संगठन मुखिया का पूरा सहयोग मिल रहा है।  संगठन मुखिया सूझबूझ वाले नेता माने जाते हैं और पार्टी की तरफ से फैसले लेने में उन्हें दिल्ली की तरफ से फ्री हैंड भी मिला हुआ है। उम्मीदवारों की नामांकन सभाओं में पहुंचकर और चुनाव प्रचार की मॉनीटरिंग कर मुखिया इस बार दिल्ली को दिवाली का बड़ा तोहफा देने के मूड में हैं।

बाई, भाई, लुगाई–राजनीति में रिश्तों का सिलसिला !
राजनीति की दुनिया भी क्या रंग-ढंग दिखाती है। कभी 'बाई' का नाम लेकर 'भाई' को निशाने पर लिया जाता है, तो कभी भाई का नाम लेकर 'लुगाई' तक पहुंचा जाता है! जब चुनाव का मौसम आता है, तो नेता अपनी ज़ुबानी तोपें लेकर मैदान में उतर पड़ते हैं, पर ये तोपें होती हैं खास। शब्दों की तोपें, जो सीधे दिल पर नहीं बल्कि दिमाग पर भारी पड़ती हैं। क्या कभी सुना था कि कोई भाई के नाम पर लुगाई पर वार करता हो ? लेकिन एक राजनीतिक पार्टी के मुखिया ने हाथों में माइक लेकर लोगों का दिल जीतने के चक्कर में बाई, भाई, लुगाई की राईमिंग बिठाते हुए जुमला उछाल दिया। विकास की बातें  चले न चलें मगर 'रिश्ते और रिश्तेदार' की चर्चाएं  खूब चल रही हैं। पहले बाई का नाम आया, फिर भाई का, और अब लुगाई का। सवाल ये है कि राजनीति की इस रिश्तेदारी में आखिर जनता कहां है? कहीं ऐसा तो नहीं कि मुखिया  जी ये भूल गए हों कि जुमलेबाजी की राजनीति में असली मुद्दे गौण हो रहे हैं।अगली बार जब कोई नेता 'भाई', 'बाई', या 'लुगाई' पर कुछ कहे तो समझ जाइएगा ये चुनावी मौसम का असर है। असली मुद्दों पर चर्चा भले न हो, पर रिश्तों का यह तमाशा दिलचस्प बना हुआ है।

पूर्व मुखिया के प्रति दिल्ली अब सॉफ्ट !
सत्ता वाली पार्टी में सरकार की पूर्व मुखिया नई सरकार की गठन के बाद से ही न के बराबर सक्रिय हैं । लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने सिर्फ अपने बेटे की सीट तक ही प्रचार किया था। लोकसभा चुनाव में पार्टी अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं कर पाई और केंद्र में पार्टी अकेले दम पर बहुमत हासिल करने से दूर रह गई । अब पार्टी ने पुराने नेताओं को तरजीह देना शुरू कर दिया है। इसकी बानगी प्रदेश प्रभारी के बयान में देखने को मिलती है। प्रदेश प्रभारी ने कहा है कि पूर्व मुखिया की लोकप्रियता और महत्व सदैव बना रहेगा। इन दिनों प्रदेश में विधानसभा की 7 सीटों के उपचुनाव हो रहे हैं और पार्टी किसी भी तरीके से चूक नहीं करना चाह रही है। इसलिए पूर्व मुखिया को महत्व देखकर उन्हें चुनाव प्रचार में लाया जा सकता है। स्टार प्रचारकों की सूची में पूर्व मुखिया का नाम दिया जा चुका है। दिल्ली उन्हें महत्व देगी यह मैसेज देने की कोशिश की जा रही है।यह भी तय है कि प्रदेश की कमान दोबारा पूर्व मुखिया को मिलने वाली नहीं है। उन्हें पार्टी संगठन में कोई बड़ा पद दिया जा सकता है। इन दिनों पार्टी में संगठन के चुनाव चल रहे हैं। अगले कुछ महीनो में नए पार्टी चीफ का चुनाव होना है। नए चीफ की टीम में पूर्व मुखिया को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल सकती है। पार्टी के चाणक्य भी अब पूर्व मुखिया के प्रति कुछ सॉफ्ट हुए हैं। पूर्व मुखिया के समर्थकों में इससे थोड़ा उत्साह का संचार हुआ है।
 

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