Edited By Chandra Prakash, Updated: 17 Nov, 2024 03:20 PM
एक फिल्म के खूब मशहूर डायलॉग' थप्पड़ से डर नहीं लगता साहब प्यार से लगता है ' की तरह ही सूबे में उपचुनाव के दौरान थप्पड़ कांड खूब चर्चित हो रहा है। एक सीट पर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार द्वारा वहां के रिटर्निंग अधिकारी को खुलेआम थप्पड़ मारने के...
हनुमानगढ़ 17 नवंबर 2024 । एक फिल्म के खूब मशहूर डायलॉग' थप्पड़ से डर नहीं लगता साहब प्यार से लगता है ' की तरह ही सूबे में उपचुनाव के दौरान थप्पड़ कांड खूब चर्चित हो रहा है। एक सीट पर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार द्वारा वहां के रिटर्निंग अधिकारी को खुलेआम थप्पड़ मारने के बाद खूब बवाल हुआ । चुनाव व आसपास वाला इलाका अभी तक इस थप्पड़ कांड की वजह से सुलग रहा है। प्रदेश की सियासत भी उबाल पर है। इस थप्पड़ ने कितने नेताओं और आम लोगों को परेशान कर रखा है, इसकी कोई सीमा नहीं है। दरअसल एक सीट पर उपचुनाव के दौरान विपक्ष वाली पार्टी का टिकट नहीं मिलने से बागी होकर चुनाव लड़ रहे एक युवा नेता आपा खो बैठे और किसी बहस के दौरान अफसर को थप्पड़ जड़ दिया। थप्पड़ जड़ने वाला उनका वीडियो खूब वायरल हुआ। थप्पड़ का असर इतना दिखा कि अफसरों की एसोसिएशन हड़ताल पर चली गई। युवा नेता को हिरासत में लेने के खिलाफ पत्थरबाजी और आगजनी ने माहौल खराब कर दिया। जाहिर है इस थप्पड़ का असर वहां की कलक्टर तक भी जाना लाजमी था। यह थप्पड़ कई सवाल खड़े कर गया कि इस हरकत के बाद युवा नेता को तुरंत हिरासत में लेकर गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया? भीड़ को जुटने से रोकने में खाकी कहां फ्लॉप साबित हुई ? कलक्टर और पुलिस कप्तान पर थप्पड़ का असर आने वाले दिनों में दिखेगा। थप्पड़ से डर नेताओं को भी लग रहा है। युवा नेता जिस तबके से आते हैं उसके वोटों की तादाद कई सीटों पर एकतरफा है इसलिए नेता भी बयान जारी करते वक्त सच न बोलकर संतुलन बनाए हुए हैं। अब बात करते हैं थप्पड़ मारने वाले युवा नेता की। डर युवा नेता को भी लगता है। हिरासत से खुद को छुड़ाकर भागने और समाज के ही सैकड़ों युवाओं को मुकदमेबाजी में फंसाकर उनका भविष्य खराब करने का तमगा हमेशा के लिए उन पर लग गया है। सूबे की सरकार पर थप्पड़ का असर जाहिर है कि कानून- व्यवस्था के मामले में सरकार की ऐसी ढिलाई हर चुनाव में जनता को आशंकित रखेगी। चुनाव लड़ने वाले नुमांइदों से आदर्श स्थापित करने की उम्मीद होती है लेकिन वे ही बवाल को अंजाम दें तो प्रदेश और देश की राजनीति का भविष्य चिंताजनक ही है।
बाबा की सियासत सरकार के लिए आफत !
सूबे की एक सीट पर उपचुनाव के दौरान हिंसा -आगजनी से मचे बवाल से सरकार की वैसे ही खूब किरकिरी हो रही है। इसी बीच बाबा के नाम से फेमस सरकार के काबिना मंत्री ने अपनी ही सरकार को घेरकर गुगली फेंक दी है। लोकसभा चुनाव में अपनी पसंद के उम्मीदवार को नहीं जिता सकने के कारण बाबा ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि उनका इस्तीफा मंजूर नहीं हुआ। उपचुनाव वाली एक सीट पर बाबा के सगे भाई को सत्ता वाली पार्टी ने टिकट दे दिया। तभी से बाबा अपने भाई के चुनाव प्रचार में व्यस्त रहे। मतदान वाले दिन पड़ौसी जिले की एक सीट पर बवाल हुआ तो बाबा वहां पहुंच गए और अपने समाज के उस युवा नेता की पैरवी कर डाली जिसकी वजह से बवाल हुआ था। बाबा ने पुलिस पर आरोप लगाया है कि घरों में घुसकर लोगों को पीटा गया। अपनी ही सरकार से सवाल कर बाबा अपने समाज में अपना कद बरकरार रखे हुए हैं लेकिन सरकार के लिए बाबा की गुगली एक बार फिर परेशानी खड़े करने वाली है। दिल्ली और प्रदेश की सरकार बाबा की सियासत को अभी तक समझ नहीं पा रही है। एससी- एसटी के आरक्षण में वर्गीकरण की वकालत करने वाले बाबा ने उपचुनाव में भाई के लिए टिकट भी हासिल कर लिया, मंत्री पद पर भी बाबा बरकरार हैं और अब अपनी ही सरकार को घेर रहे हैं जबकि उनकी ही सरकार की जिम्मेवारी थी कि भीड़ को उपद्रव से रोकने के उपाय अपनाए जाते। विवादों में आई एसआई भर्ती परीक्षा को रद्द करने की बाबा खुले तौर पर मांग कर चुके हैं लेकिन सरकार ने अभी तक इस पर फैसला नहीं लिया है। बाबा सरकार से सवाल कर सिर्फ खुद का कद बचाना चाहते हैं इसलिए वह विपक्ष के संगठन के सीधे निशाने पर हैं। चुनाव प्रचार के दौरान ही विपक्षी संगठन मुखिया उनके इस व्यवहार को लेकर तीखे हमले करते रहे हैं।
प्रभारी की घुड़की का गुणा-भाग
सत्ता वाली पार्टी में सदस्यता अभियान नेतृत्व की तमाम कोशिशों के बाद रफ्तार नहीं पकड़ रहा है। अब पार्टी के प्रदेश प्रभारी ने राजधानी में हुई मीटिंग में साफ कह दिया कि जिन जिलों में मेंबरशिप कमजोर रहेगी वहां के जिलाध्यक्षों को आराम करवाया जा सकता है। बढ़िया काम करने वालों को इनाम मिलेगा। प्रभारी का साफ संकेत पाकर संगठन में कुछ हलचल देखने को मिल रही है। पार्टी में नए प्रदेश प्रधान की नियुक्ति के बाद जिलों में अध्यक्ष बदलने की चर्चाएं भी लंबे समय से चल रही हैं । पार्टी सदस्यता अभियान के नाम पर बदलने वाले अध्यक्षों का काम निपटा सकती है। जिलों में सदस्यता अभियान को लेकर कई बार संयोजक लगाए जा चुके हैं। संयोजक आकर पार्टी दफ्तरों में मीटिंग लेते हैं लेकिन ग्राउंड लेवल पर सदस्यता अभियान पार्टी की उम्मीद पर खरा नहीं उतर रहा है। अब पार्टी के प्रभारी की घुड़की का गुणा -भाग लगाकर सदस्यता अभियान के गति पकड़ने की उम्मीद है। जिलों में अध्यक्षी पाने के दावेदार इस मामले में और तेजी दिखा सकते हैं।