Edited By Chandra Prakash, Updated: 01 Nov, 2024 04:10 PM
वर्तमान समय में समाज में कुछ ऐसी संस्थाएं,संगठन और व्यक्ति हैं जो वृद्ध आश्रम में रह रहे बुजुर्गों की पीड़ा को अपने प्रचार का माध्यम बना रहे हैं। ये लोग जब किसी वृद्ध को दस रुपए के केले थमाते हैं, तो समझते हैं मानो उन्होंने समाज के प्रति बहुत बड़ा...
हनुमानगढ़, 1 अक्टूबर 2024 । वर्तमान समय में समाज में कुछ ऐसी संस्थाएं,संगठन और व्यक्ति हैं जो वृद्ध आश्रम में रह रहे बुजुर्गों की पीड़ा को अपने प्रचार का माध्यम बना रहे हैं। ये लोग जब किसी वृद्ध को दस रुपए के केले थमाते हैं, तो समझते हैं मानो उन्होंने समाज के प्रति बहुत बड़ा दान कर दिया हो। लेकिन क्या यह वास्तव में दान है, या फिर बुजुर्गों की लाचारी का मजाक उड़ाना है? इन संस्थाओं के पदाधिकारी, जो खुद को 'दानवीर' और सुसंस्कृत' समझते हैं। निर्लज्जता से वृद्धों के साथ फोटो शूट करवाते हैं। वे अपने दस रूपए के केले के 'अहसान' को दिखाने के लिए विभिन्न पोज़ में फोटो खिंचवाते हैं। वे ऐसा फील करवाते हैं मानो उन्होंने समाज की किसी बड़ी समस्या का हल निकाल लिया हो। लेकिन वास्तविकता यह है कि बुजुर्गों के साथ उनकी ये तस्वीरें केवल उनके आत्म-संतोष के लिए ही होती हैं। समाज का नजरिया ऐसे लोगों के प्रति ज्यादा पॉजिटिव नहीं होता। जब हम बुजुर्गों की बेबसी की बात करते हैं, तो यह समझना जरूरी है कि वे कितनी संवेदनशीलता और सम्मान के साथ जीने के हकदार हैं। हम उन्हें केवल 'प्रचार का जरिया' नहीं बना सकते।
समाज में ऐसे 'अखबारी जीव' हैं, जो केवल खुद के नाम के लिए इस संवेदनशील मुद्दे का दोहन कर रहे हैं। क्या हम सच में सोचते हैं कि दस- बीस रुपए का फ्रूट किसी बुजुर्ग के लिए वास्तविक सहायता है? या यह सिर्फ एक दिखावा है? हमें ऐसे लोगों की आलोचना करनी चाहिए, जो संवेदनशीलता की कमी के कारण बुजुर्गों के साथ इस तरह का व्यवहार करते हैं। समाज में वास्तविकता को समझने और बुजुर्गों के प्रति सही सम्मान देने की जरूरत है। हमें ऐसे लोगों को पहचानना और उनका विरोध करना चाहिए, जो केवल अपनी तस्वीरों और प्रचार के लिए इन बुजुर्गों का तमाशा बना रहे हैं। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस मुद्दे को उठाएं और एक संवेदनशील और सम्मानजनक समाज की दिशा में कदम बढ़ाएं।
बहरहाल,सबको यह याद रखना चाहिए कि एक समाज की सच्ची पहचान उस समाज के सबसे कमजोर वर्ग, अर्थात बुजुर्गों के प्रति उसके व्यवहार से होती है। जब हम उनकी आवाज़ सुनने और उनके अधिकारों का सम्मान करने लगेंगे, तभी हम एक समृद्ध और सच्चे मानवता के मार्ग पर चलेंगे।
संवेदनशीलता के इस अभाव को समाप्त करना होगा, क्योंकि यह न केवल बुजुर्गों के लिए, बल्कि समस्त मानवता के लिए आवश्यक है। हमें उनके साथ खड़े होना चाहिए, न कि उन्हें तस्वीरों के लिए वस्तु बनाकर उनके दर्द को नजरअंदाज करना चाहिए। हम सब मिलकर एक ऐसा समाज बनाने की दिशा में प्रयासरत हों, जहां बुजुर्गों का आदर हो और उनकी अस्मिता की रक्षा की जाए।
कैप्शन हनुमानगढ़, फाइल फोटो वृद्ध आश्रम।