Edited By Kuldeep Kundara, Updated: 14 Feb, 2025 02:55 PM
![culture traditions and growing obscenity on social media](https://img.punjabkesari.in/multimedia/914/0/0X0/0/static.punjabkesari.in/2025_2image_14_16_0560727871-ll.jpg)
भारत जो अपनी सांस्कृतिक विरासत और पारिवारिक मूल्यों के लिए विश्वभर में जाना जाता है, आज सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर विकृत भाषा और नैतिक पतन का सामना कर रहा है। हाल ही में एक यूट्यूब शो में माता-पिता के निजी संबंधों को लेकर जिस प्रकार की अभद्र...
हनुमानगढ़ (बालकृष्ण थरेजा) | भारत जो अपनी सांस्कृतिक विरासत और पारिवारिक मूल्यों के लिए विश्वभर में जाना जाता है, आज सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर विकृत भाषा और नैतिक पतन का सामना कर रहा है। हाल ही में एक यूट्यूब शो में माता-पिता के निजी संबंधों को लेकर जिस प्रकार की अभद्र और संस्कारहीन बातें की गईं वह केवल एक शर्मनाक हरकत नहीं बल्कि हमारी सामाजिक और नैतिक जड़ों पर हमला है। भारतीय संस्कृति में माता-पिता को पूजनीय माना जाता है। वे केवल जन्मदाता नहीं बल्कि परिवार की नींव होते हैं जिनकी तपस्या और समर्पण से संतानें संस्कारित होती हैं। ऐसे में सार्वजनिक मंचों पर उनके निजी जीवन पर टिप्पणी करना न केवल अमर्यादित है बल्कि सामाजिक विघटन को बढ़ावा देने वाला भी है। वर्तमान में सोशल मीडिया के नाम पर जिस प्रकार के कंटेंट परोसे जा रहे हैं वे समाज को नैतिक दिवालियापन की ओर धकेल रहे हैं। अश्लीलता, फूहड़ता और लाइक्स के लालच में तथाकथित इन्फ्लुएंसर मर्यादा की सभी सीमाएं लांघ रहे हैं। इसका सबसे बुरा प्रभाव युवाओं पर पड़ रहा है जो इन विकृत विचारों को सामान्य मानकर अपने आचरण में ढालने लगते हैं।
क्या अश्लीलता नशे से कम घातक है ?
जब सरकारें शराब, कोकीन, हेरोइन और अन्य मादक पदार्थों को युवाओं के लिए घातक मानते हुए उन पर सख्त कार्रवाई करती हैं, तब स्टैंडअप कॉमेडी के नाम पर लोगों को गालियां देना, माता-पिता के निजी जीवन पर बेहूदा टिप्पणियां करना और भाषा की सारी मर्यादाएं तोड़ देना क्या मानसिक नशे से कम है ? युवा पीढ़ी को गलत दिशा में धकेलने के लिए केवल नशीले पदार्थ ही जिम्मेदार नहीं होते बल्कि सामाजिक और नैतिक मूल्यों का ह्रास भी उतना ही खतरनाक होता है। जब स्टैंडअप कॉमेडियन और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर बेहूदगी और भद्दे मजाक को 'हास्य' का नाम देकर इसे सामान्य बनाने की कोशिश करते हैं तो यह किसी भी समाज के लिए आत्मघाती होता है।
टीवी, फिल्में और अब विधानसभाओं तक में गिरता स्तर
अश्लीलता और अभद्र भाषा की समस्या केवल यूट्यूब और स्टैंडअप कॉमेडी तक सीमित नहीं रही। टीवी शो और फिल्मों में जहां पहले शालीनता होती थी अब वहां भी द्विअर्थी संवाद और फूहड़ता बढ़ती जा रही है। सबसे चिंता की बात यह है कि यह प्रवृत्ति अब देश की विधानसभाओं तक पहुंच गई है। विशेषकर पंजाब जैसे राज्यों में रीजनल भाषाओं में एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए जिस तरह की अभद्र और अश्लील टिप्पणियां की जाती हैं वह शर्मनाक है। जनप्रतिनिधि, जो समाज के आदर्श बनने चाहिए वही भाषा की मर्यादा खो रहे हैं और अपने ही मतदाताओं के सामने स्तरहीन बहस कर रहे हैं। राजनीति में लोकप्रियता की भूख और सोशल मीडिया पर ट्रेंडिंग रहने की चाहत ने कई लोगों को एथिक्स और नैतिकता भुला देने पर मजबूर कर दिया है। यह केवल नेताओं तक सीमित नहीं है बल्कि मीडिया, फिल्म इंडस्ट्री, यूट्यूबर्स और स्टैंडअप कॉमेडियंस भी इसी दौड़ में शामिल हो चुके हैं।
प्रधानमंत्री मोदी का विजन और युवा पीढ़ी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा इस बात पर जोर देते हैं कि भारत की युवा पीढ़ी सिर्फ आधुनिक तकनीक और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों में भी अग्रणी होनी चाहिए। वे मानते हैं कि अगर देश की युवा शक्ति संस्कारों से समृद्ध होगी, तो भारत का भविष्य उज्ज्वल और सशक्त बनेगा। प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि डिजिटल युग में विकास और आधुनिकता आवश्यक हैं लेकिन इनके साथ नैतिकता और संस्कारों का संतुलन बना रहना चाहिए। यदि युवा अपने मूल्यों और भारतीय सभ्यता से कट जाएंगे तो उनकी ऊर्जा दिशाहीन हो जाएगी।
क्या कहता है कानून ?
भारतीय दंड संहिता (IPC) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) में ऐसे मामलों के लिए कड़े प्रावधान हैं। IPC की धारा 292 अश्लील सामग्री के निर्माण, बिक्री और प्रचार-प्रसार को अपराध मानती है। आईटी एक्ट की धारा 67 इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से अश्लीलता फैलाने पर सजा का प्रावधान करती है। इसी प्रकार POCSO एक्ट नाबालिगों के समक्ष किसी भी प्रकार की अश्लील या यौनिक अभिव्यक्ति को अपराध मानता है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इन कानूनों का सही ढंग से क्रियान्वयन हो रहा है?
सख्त कार्रवाई की जरूरत
इस तरह की घटनाएं केवल कुछ लोगों की गलती नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था की चूक को दर्शाती हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगातार फैल रही अश्लीलता पर लगाम लगाने के लिए कड़े कदम उठाने की जरूरत है। इसके अलावा, शिक्षण संस्थानों में डिजिटल नैतिकता (Digital Ethics) को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम और अन्य डिजिटल मंचों पर इस तरह के कंटेंट को तुरंत हटाने और संबंधित क्रिएटर्स पर सख्त कार्रवाई करने के नियम बनाए जाएं। ऐसे मामलों में त्वरित न्याय और कठोर दंड की व्यवस्था हो ताकि भविष्य में कोई भी इस तरह की बेहूदा हरकत करने से पहले सौ बार सोचे। इसके अलावा यह सिर्फ सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं बल्कि समाज को भी यह तय करना होगा कि वह किन्हें 'इन्फ्लुएंसर' बनने का मौका देता है। कुल मिलाकर आज सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर भाषा का गिरता स्तर, माता-पिता के सम्मान पर प्रहार और नैतिकता का पतन हमारे समाज के लिए खतरनाक संकेत हैं। यदि यह प्रवृत्ति ऐसे ही बढ़ती रही तो हमारी आने वाली पीढ़ी नशे की तरह मानसिक रूप से भी भ्रष्ट हो जाएगी। अब वक्त आ गया है कि सरकार इस बढ़ती अश्लीलता और अभद्रता के खिलाफ सख्त कदम उठाए ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां गर्व से कह सकें कि हम एक सभ्य, संस्कारी और सशक्त समाज का हिस्सा हैं।