Edited By Chandra Prakash, Updated: 14 Nov, 2024 06:14 PM
नशे के बाद अब लोगों को मोबाइल फोन और इंटरनेट की लत लग रही है। बच्चे ही नहीं हर आयु वर्ग के शख्स को यह लत लग चुकी है। बच्चों सहित अन्य आयु वर्ग के लोग रोजाना बिना किसी आवश्यक कार्य के घंटों मोबाइल फोन और इंटरनेट इस्तेमाल कर रहे हैं। जिला अस्पताल की...
हनुमानगढ़ 14 नवम्बर 2024 । नशे के बाद अब लोगों को मोबाइल फोन और इंटरनेट की लत लग रही है। बच्चे ही नहीं हर आयु वर्ग के शख्स को यह लत लग चुकी है। बच्चों सहित अन्य आयु वर्ग के लोग रोजाना बिना किसी आवश्यक कार्य के घंटों मोबाइल फोन और इंटरनेट इस्तेमाल कर रहे हैं। जिला अस्पताल की ओपीडी में रोजाना इस तरह के पांच से सात मरीज पहुंच रहे हैं।
मनोचिकित्सकों के अनुसार ओपीडी में आने वाले मरीजों में मोबाइल फोन और इंटरनेट की लत के काफी मरीज शामिल हैं। पहले बच्चों में यह लत अधिक थी लेकिन अब हर आयु के पुरुष व महिलाओं को मोबाइल फोन और इंटरनेट की लत लग चुकी है। उनके पास रोजाना ओपीडी में इस तरह के पांच से सात मरीज आ रहे हैं, जो मोबाइल फोन व इंटरनेट के अधिक इस्तेमाल की लत से ग्रसित हैं।
मोबाइल फोन या इंटरनेट इस्तेमाल करने में गुजरता है दिन
उन्होंने कहा कि व्यक्ति को जिस तरह से नशे की लत होती है, यह भी उसी तरह की लत है। परिवार के सदस्य अगर उस शख्स को मोबाइल फोन या इंटरनेट से दूर करते हैं तो उसमें चिड़चिड़ापन, बैचेनी, घबराहट सहित वही सारे लक्षण नजर आते हैं, जो नशा करने वाले को नशा करने से रोकने पर दिखाई देते हैं। इस तरह के मरीजों में कई बार अवसाद के लक्षण भी देखने को मिलते हैं। इसके प्रभाव भी काफी देखने को मिलते हैं। कई बार पारिवारिक परिस्थितियां ऐसी हो जाती हैं कि घर टूटने की कगार पर आ जाता है। ऐसे मरीजों से समझाइश की जाती है। कई मरीज इस बात को मानते भी हैं कि वे सामान्य से ज्यादा वक्त मोबाइल फोन या इंटरनेट इस्तेमाल करने में गुजारते हैं। वे इसके पीछे उदाहरण भी देते हैं कि अब पारिवारिक पृष्ठभूमि इस तरह की हो चुकी है, कि पहले हम संयुक्त परिवार में रहते थे। अब संयुक्त परिवार नहीं रहा। यह भी सबसे बड़ा कारण है। इससे परिवार का टूटना भी आम बात है।
मोबाइल फोन या इंटरनेट का इस्तेमाल जरूरत करने पर ही करें
उन्होंने बताया कि बच्चों में इसका पता नहीं चल पाता कि बच्चा या परिवार का अन्य सदस्य मोबाइल फोन या इंटरनेट का आदी हो चुका है। इससे व्यक्ति की प्रोडक्टिविटी धीरे-धीरे खत्म होने लगती है। दूसरा इससे सोचने-समझने की क्षमता पर गहरा असर पड़ता है। दिमाग उतना ही सोच पाता है जितना वह इन चीजों के इस्तेमाल में लगाता है। इसके लिए ध्यान रखना पड़ेगा। कई बार बच्चे स्कूल से आकर कमरे में ज्यादा समय बिताते हैं। ज्यादा अकेले रहने लगते हैं। यदि अपने परिवार के किसी बच्चे या सदस्य में इस तरह के लक्षण दिखाई दें तो नि:संकोच नजदीकी मनोचिकित्सक की सलाह लें। उन्होंने कहा कि पूर्व में संयुक्त परिवार की तरह रहें। पारिवारिक माहौल अच्छा हो। एक-दूसरे से बात कर समस्या का समाधान किया जाए। आपस में बातचीत सुचारू रखें। इससे हम इस तरह की समस्या से छुटकारा पा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर व्यक्ति जरूरी काम न होने के बावजूद मोबाइल फोन या इंटरनेट में दो घंटे का समय लगाता है तो उतने समय में वह कोई अन्य कार्य कर सकता है। उन्होंने सभी से अपील की कि जितना आवश्यक हो उतना ही मोबाइल फोन या इंटरनेट का इस्तेमाल करें। जहां तक हो सके मोबाइल फोन का उपयोग कम से कम करें।