Holi Special – यहां रंग, पिचकारी नहीं, बारूद से खेली जाती है होली, रात भर चलती हैं तोपें

Edited By Raunak Pareek, Updated: 13 Mar, 2025 06:31 PM

a village where holi is played not with colors and flowers but with gunpowder

राजस्थान के मेनार गांव का जिक्र कर्नल जेम्स टॉड की पुस्तक में मिलता है। यह गांव महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह से जुड़ा है। यहां हर साल पूर्व रजवाड़ों के सैनिकों की वेशभूषा में ग्रामीण वीरता का प्रदर्शन करते हैं

होली का त्यौहार नजदीक आते ही राजस्थान के अलग-अलग क्षेत्रों में इसकी धूम देखने को मिलती है। लेकिन राजस्थान के मेनार गांव में होली का जश्न बिल्कुल अनूठा होता है, क्योंकि यहां फूलों और रंगों के बजाय बारूद से होली खेली जाती है। यह अनोखी परंपरा पूरे देशभर में अपनी अलग पहचान रखती है। मेनार गांव, उदयपुर से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित है, और इस ऐतिहासिक परंपरा को देखने के लिए हर साल हजारों लोग यहां पहुंचते हैं।

मेनार गांव की बारूदी होली का इतिहास

इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा के अनुसार, मेनार गांव की यह परंपरा 500 साल पुरानी है और इसे मुगलों के खिलाफ विजय की याद में मनाया जाता है। कहा जाता है कि जब महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी युद्ध के दौरान पूरे मेवाड़ को मुगलों के खिलाफ संगठित किया, तब अमर सिंह के नेतृत्व में मुगलों की छावनियों पर हमले किए गए। मेनार गांव के रणबांकुरों ने भी मुगलों को पराजित कर अपनी भूमि को स्वतंत्र किया। इस जीत की याद में यहां हर साल शौर्य पर्व ‘जमराबीज’ मनाया जाता है, जिसमें बंदूक और बारूद से होली खेली जाती है।

होली की रात: जब मेनार गूंज उठता है बारूद की गूंज से

15 मार्च की रात जब शाम ढलती है, तो मेनार गांव का मुख्य चौक ओंकारेश्वर चौक सैनिकों के जमावड़े से गूंज उठता है। गांव के लोग पूर्व राजपूत सैनिकों की पोशाक (धोती-कुर्ता, कसुमल पाग) पहनकर, बंदूकें और तलवारें लेकर ललकारते हुए अलग-अलग रास्तों से चौक पर इकट्ठा होते हैं। फिर रंगों की जगह बारूद की गूंज से होली खेली जाती है। यह नज़ारा किसी युद्ध के मैदान से कम नहीं होता और यह परंपरा मेवाड़ की गौरवशाली विरासत की याद दिलाती है।

गांव का भव्य श्रृंगार और दिवाली जैसी जगमगाहट

होली से पहले ही गांव को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। घरों पर रंग-बिरंगी लाइटें लगाई जाती हैं और पूरा गांव दिवाली जैसी रोशनी में नहाया नजर आता है। देश-विदेश में बसे गांव के युवा भी इस ऐतिहासिक परंपरा में शामिल होने के लिए अपने वतन लौटते हैं।

कर्नल जेम्स टॉड का ऐतिहासिक उल्लेख

ब्रिटिश इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी पुस्तक ‘द एनालिसिस ऑफ राजस्थान’ में इस गांव का उल्लेख ‘मनिहार गांव’ के रूप में किया है। इस गांव का संबंध महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह से भी जुड़ा है।

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