राजेंद्र राठौड़ ने महाराज सवाई जयसिंह द्वितीय के जयंती समारोह में की शिरकत

Edited By Kuldeep Kundara, Updated: 17 Nov, 2024 07:32 PM

birth anniversary celebrations of maharaja sawai jai singh ii

राजस्थान विधानसभा में पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने रविवार को राजपूत सभा जगतपुरा, छात्रावास में आयोजित जयपुर के संस्थापक धर्मानुरागी महाराज सवाई जयसिंह द्वितीय जी के जयंती समारोह को सम्बोधित करते हुए कहा कि सवाई जयसिंह द्वितीय जैसे...

जस्थान विधानसभा में पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने रविवार को राजपूत सभा जगतपुरा, छात्रावास में आयोजित जयपुर के संस्थापक धर्मानुरागी महाराज सवाई जयसिंह द्वितीय जी के जयंती समारोह को सम्बोधित करते हुए कहा कि सवाई जयसिंह द्वितीय जैसे महानायक अपनी संस्कृति और जड़ों से जुड़े सदैव जुड़े रहे हैं। मुगल बादशाह भी उनके शौर्य व कूटनीति के कायल थे। सभी धर्मों का सम्मान, उनकी धर्मानुरागिता और शासन क्षमता ने उन्हें एक महान शासक और विद्वान बनाया था। वर्तमान युवा पीढ़ी को उनके आदर्शों से प्रेरणा लेनी चाहिए। 

राठौड़ ने कहा​ कि हमारे किले, हमारे मंदिर और हमारी परंपराएं, गौरवशाली अतीत का प्रतीक हैं, अब धीरे-धीरे समाप्त हो रही हैं जिसके दोषी हम स्वय हैं। ये धरोहरें, किले केवल पत्थर नहीं हैं, ये हमारी पहचान हैं। जब हम इन्हें भूलते हैं या बेचते हैं तो केवल इमारतें नहीं, हमारी आत्मा भी खोती है। हमारी संयुक्त परिवार प्रणाली, जो हमारे समाज की ताकत थी वो टूट रही है। इससे समाज में एकाकीपन और अस्थिरता बढ़ रही है। आज हम सभी को एकजुट होने की महती आवश्यकता है। PunjabKesariराठौड़ ने कहा कि जयपुर के संस्थापक महाराजा जयसिंह द्वितीय की विरासत आज भी जयपुर में देखी जा सकती है। उनके द्वारा बनवाई गई इमारतें और संस्थान वर्तमान में शहर की शान और मान बढ़ा रही हैं। उनके द्वारा कई धार्मिक स्थलों का निर्माण करवाया। जयपुर शहर की सुंदरता और व्यवस्थाएं उनके द्वारा बनाई गई व्यवस्थित योजनाओं का ही परिणाम है। वर्तमान में जयपुर गुलाबी शहर के नाम से पूरे विश्व में जाना जाता है। यहां पर स्थित हवा महल, सिटी पैलेस और जंतर-मंतर जैसी कई सुंदर और ऐतिहासिक इमारतें देश और प्रदेश का मान बढ़ा रही है। 

राठौड़ ने कहा कि महाराजा जयसिंह द्वितीय जी को वेद, उपनिषद, और पुराणों के साथ राजनीति, अर्थशास्त्र, प्रशासन, संगीत, नृत्य, कला, खगोल विज्ञान, गणित और वास्तुकला का गहरा अध्ययन किया गया था। वे संस्कृत, हिंदी, और फारसी भाषाओं में निपुण थे। प्राचीन काल से ही भारतीयों को गणित और खगोलिकी की जटिल संकल्पनाओं में गहरी रुचि और गहन ज्ञान था। ये वेधशाला उसका जीता जागता सबूत हैं। सवाई जयसिंह खुद खगोल शास्त्र विषय में रुचि रखते थे। उन्होंने एक किताब भी लिखी थी, यंत्र राज्य रचना, जिसमें यंत्रों के बारे में लिखा गया था।

राठौड़ ने कहा कि अंतरिक्ष काफी पहले से ही पूरे विश्व के लोगों के लिए बड़ा रोचक और कौतूहल भरा विषय रहा है। आज हम सब घड़ी के माध्यम से समय का पता बड़ी आसानी से कर लेते हैं पर पूर्व काल में लोग सूर्य की परछाई से समय का पता लगाते थे। खगोल विज्ञान और खगोलिकी की जटिल संकल्पनाओं के प्रति महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय की गहरी रुचि रही है। वह स्वयं एक बेहतरीन खगोलशास्त्री (एस्ट्रोनोमर) भी थे। सटीक समय मापने, ग्रहों और तारों की स्थिति जानने और अंतरिक्ष के अध्ययन करने के लिए उनके द्वारा देश में खगोलीय वेधशालाओं का निर्माण कराया गया। देश भर में पांच ऐतिहासिक खगोलीय वेधशालाओं (एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जर्वेशन) का निर्माण कराया था। 

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    राठौड़ ने कहा कि देश की इन वेधशालाओं को जंतर-मंतर का नाम दिया गया। ये पांचों जंतर-मंतर जयपुर, दिल्ली, मथुरा, उज्जैन और बनारस में मौजूद हैं। भारत की सबसे बड़ी खगोलीय वेधशाला जयपुर का जंतर-मंतर है। इसका निर्माण 1724 ई. में शुरू हुआ था जो 1734 ई. यानी लगभग 10 साल में बनकर तैयार हुआ था। जंतर-मंतर की अद्भुत संरचना, ऐतिहासिक और खगोलीय वैज्ञानिक महत्व की वजह से ही इसे यूनेस्को ने वर्ष 2010 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट यानी विश्व विरासत में शामिल किया है।
     

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