Edited By Kailash Singh, Updated: 30 Sep, 2025 12:56 PM

पर्यटन नगरी जैसलमेर में दुर्गा पूजा के बाद देशी और विदेशी सैलानियों की भीड़ देखने को मिल रही है। खासतौर पर बंगाली सैलानियों की तादाद काफी अधिक रही, जो शहर के ऐतिहासिक सोनार दुर्ग, पटवा हवेलियां और गड़ीसर सरोवर की खूबसूरती का आनंद लेने पहुंचे। दशहरा...
पर्यटन नगरी जैसलमेर में दुर्गा पूजा संपन्न होने के साथ ही देशी सैलानियों का भीड़ भड़क्का देखने को मिलने लगा है। मंगलवार को इन सैलानियों में बांग्ला पर्यटकों की तादाद काफी अधिक रही। यह संकेत है कि आने वाले दिनों में दिवाली पर्व तक जैसलमेर में इसी तरह से 'आमार शोनार बांग्ला' (मेरा सोने का बंगाल) गीत की पंक्तियां चरितार्थ होती रहेंगी। शहर के ऐतिहासिक सोनार दुर्ग, कलात्मक गड़ीसर सरोवर से लेकर पत्थर पर नायाब कलाकारी के लिए जगप्रसिद्ध पटवा हवेलियों को देखने बड़ी तादाद में देशी सैलानी उमड़े नजर आए। इसी तरह से विदेशी सैलानियों के कुछ बड़े समूह भी स्वर्णनगरी का भ्रमण करने पहुंच रहे हैं। इससे शहर से लेकर सम के धोरों तक सैलानियों की अच्छी खासी भीड़ नजर आने से पर्यटक व्यवसायियों के चेहरों पर रौनक नजर आने लगी है। वे पिछले कई दिनों से पर्यटन सीजन के परवान चढ़ने का इंतजार कर रहे हैं। शहर के होटलों से लेकर रेस्टोरेंट्स और बाजारों में पर्यटकों की अच्छी आवक हो रही है। साथ ही सम व खुहड़ी के रिसोर्ट्स में गीत-संगीत की महफिलें जमने लगी है। दशहरा के बाद से पर्यटन पर निकलने की बंगाली लोगों में एक परम्परा-सी बनी हुई है। इसे निभाते हुए वे विगत कई वर्षों से बंगाली सैलानी जैसलमेर घूमने आना शुरू हो गए हैं। ऐसे में यह तय है कि दिवाली से कुछ दिन पहले तक जैसलमेर में मिनी बंगाल बनने वाला है। बंगाली सैलानियों की पहचान है, हाथों में छाता, आंखों पर चश्में और सिर पर टोपी। दिवाली तक के करीब 20 दिनों के दौरान इस बार करीब 25 हजार बंगाली सैलानियों के आगमन से जैसलमेर के पर्यटन व्यवसायियों को करोड़ों रुपए के व्यवसाय की उम्मीद है। गौरतलब है कि सत्यजीत राय की फिल्म सोनार केला की अधिकांश शूटिंग जैसलमेर दुर्ग में ही हुई थी। उसी के बाद इस दुर्ग को सोनार दुर्ग के नाम से पहचान मिली। इस फिल्म में जैसलमेर की खूबसूरती को देखकर पश्चिम बंगाल के अलग-अलग क्षेत्रों से पर्यटकों