Edited By Kuldeep Kundara, Updated: 24 May, 2025 06:39 PM

राजस्थान की राजनीति में दोस्ती, दुश्मनी और बदलाव की कहानियां हमेशा से सुर्खियों में रही हैं। कभी अशोक गहलोत और सचिन पायलट की जोड़ी कांग्रेस की जान मानी जाती थी, लेकिन अब नए सियासी समीकरण उभरते दिख रहे हैं। क्या गोविंद सिंह डोटासरा और टीकाराम जूली इस...
राजस्थान की राजनीति में दोस्ती, दुश्मनी और बदलाव की कहानियां हमेशा से सुर्खियों में रही हैं। कभी अशोक गहलोत और सचिन पायलट की जोड़ी कांग्रेस की जान मानी जाती थी, लेकिन अब नए सियासी समीकरण उभरते दिख रहे हैं। क्या गोविंद सिंह डोटासरा और टीकाराम जूली इस विरासत को आगे ले जा पाएंगे? आइये देखते हैं हमारी ये खास रिपोर्ट…
राजस्थान की राजनीति में अगर किसी जोड़ी ने लंबे समय तक कांग्रेस को दिशा देने का काम किया है, तो वो हैं अशोक गहलोत और सचिन पायलट। गहलोत जहां एक अनुभवी रणनीतिकार के रूप में जाने जाते हैं, वहीं पायलट ने युवाओं में नई उम्मीद जगाई थी।
लेकिन वक्त के साथ समीकरण बदले, नाराज़गियां हुई, और राजनीतिक रिश्तों में दरारें भी आईं। हालिया विधानसभा चुनावों में सचिन पायलट ने जोरदार प्रचार किया, भले ही उन्हें कोई पद न मिला हो, लेकिन वो लगातार जनता से जुड़े रहे। वहीं अशोक गहलोत अब राजनीतिक गतिविधियों से थोड़े दूर होकर पारिवारिक पलों का आनंद ले रहे हैं – खास तौर से अपने पोते के साथ।
राजनीति से थोड़ी दूरी के बाद भी गहलोत का रसूख बरकरार है, और पायलट की जनप्रियता भी कम नहीं हुई है। लेकिन अब कांग्रेस की भीतरी राजनीति में एक नई जोड़ी तेजी से उभरती नज़र आ रही है- पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली।
चाहे विरोध प्रदर्शन हो या सरकार पर हमला, दोनों नेता कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं। डोटासरा जहां संगठन में मज़बूती से काम कर रहे हैं, वहीं जूली सदन के भीतर विपक्ष की धार तेज कर रहे हैं।
"टीकाराम जूली और डोटासरा दोनों जमीनी नेता हैं। लेकिन गहलोत-पायलट जैसे जनाधार और राष्ट्रीय स्तर की पकड़ अभी दूर की कौड़ी है।" "राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति हमेशा जोड़ी सिस्टम पर चली है। चाहे वो मोहनलाल सुखाड़िया–हरिदेव जोशी हो या गहलोत–पायलट। अब अगर कोई नई जोड़ी बनती है, तो उसका भविष्य कांग्रेस की रणनीति पर निर्भर करेगा।"
एक समय की बात है, जब सचिन पायलट ने बगावत की थी और उनके समर्थक विधायकों को मानेसर शिफ्ट किया गया था। उस दौर में कांग्रेस ने अपने सारे संगठनात्मक प्रयासों में डोटासरा को अहम जिम्मेदारी दी थी। वहीं, जूली ने भी पायलट के खिलाफ मोर्चा संभाला था। ये वही दो नेता हैं जो अब कांग्रेस का चेहरा बनते जा रहे हैं।
तो क्या ये दोनों नेता कांग्रेस की अगली पीढ़ी बन पाएंगे? क्या ये लोकप्रियता और अनुभव के उस स्तर तक पहुंचेंगे, जहां आज भी गहलोत और पायलट कायम हैं? या फिर कांग्रेस एक बार फिर पुराने चेहरों पर ही भरोसा जताएगी?
"राजस्थान की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा, ये अभी तय नहीं… लेकिन कांग्रेस के भीतर सत्ता और संगठन की यह दोस्ती आने वाले दिनों में ज़रूर असर डालेगी।"