भगवान बिरसा मुंडा कौन है! आदिवासी क्यों पूजते हैं उन्हें

Edited By Anil Jangid, Updated: 30 Oct, 2025 04:21 PM

who was bhagwan birsa munda the tribal hero

जयपुर। राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने घोषणा की है कि भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के अवसर पर राज्यभर में 1 नवम्बर से 15 नवम्बर तक जनजाति गौरव वर्ष के तहत विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिए...

जयपुर। राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने घोषणा की है कि भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के अवसर पर राज्यभर में 1 नवम्बर से 15 नवम्बर तक जनजाति गौरव वर्ष के तहत विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि इस दौरान आयोजित होने वाली गतिविधियों, नवाचारों और कार्यक्रमों को भव्य रूप से मनाते हुए सफल आयोजन सुनिश्चित किया जाए ताकि भगवान बिरसा मुंडा के प्रेरणादायी जीवन और उनके संघर्ष की कहानी जन-जन तक पहुंच सके। वहीं, इस अवसर पर डूंगरपुर-बांसवाड़ा से सांसद राजकुमार रोत भी कई कार्यक्रम आयोजित करेंगे और आदिवासी समुदाय में उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य करेंगे।

 

भगवान बिरसा मुंडा: एक महानायक का जीवन संघर्ष
भगवान बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को बिहार के उलीहातू गांव, जिला रांची में हुआ था। उनका जीवन केवल 25 साल का रहा, लेकिन इतने कम समय में उन्होंने आदिवासी समाज के लिए एक ऐतिहासिक संघर्ष छेड़ा, जिसे उलगुलान के नाम से जाना जाता है। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाई और आदिवासी समाज को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने की दिशा दिखाई।

बिरसा मुंडा ने हिंदू और ईसाई धर्म दोनों की शिक्षा ली थी, लेकिन उनका मुख्य उद्देश्य अपनी संस्कृति और धर्म को बचाना और उसे पुनः स्थापित करना था। उन्होंने मुंडा समाज के सामाजिक और आर्थिक शोषण को समझा और इसे समाप्त करने के लिए जन जागरण शुरू किया।

बिरसा मुंडा का संघर्ष केवल उनके राज्य झारखंड तक सीमित नहीं था, बल्कि उनका प्रभाव पूरे देश में महसूस किया गया। उनके नेतृत्व में आदिवासी समाज ने अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट होकर विद्रोह किया। वे न केवल झारखंड के बल्कि पूरे देश के नायक बन गए। बिरसा मुंडा ने अपनी शहादत से यह साबित किया कि छोटे से जीवन में भी बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं।

 

बिरसा मुंडा की लड़ाई: आदिवासियों के अधिकारों के लिए
भारत की आज़ादी की लड़ाई केवल मैदानों में नहीं, बल्कि जंगलों और पहाड़ों में भी लड़ी गई थी। बिरसा मुंडा की उलगुलान ने अंग्रेजी शासन को ऐसी चुनौती दी कि ब्रिटिश सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया और अंततः जहर देकर उनकी हत्या कर दी। हालांकि, उनकी शहादत के बाद भी उनका संघर्ष जीवित रहा। झारखंड के लोग उन्हें नायक के रूप में देखते हैं और उनकी प्रतिमाओं में उन्हें बेड़ियों में बंधे हुए दिखाया जाता है, जो उनकी बेदाग संघर्ष की प्रतीक है।

बिरसा मुंडा की शहादत और उनके संघर्ष से प्रेरित होकर आदिवासी समाज में आज भी कई गीत और कविताएँ गाई जाती हैं। उनकी महानता को आदिवासी साहित्य में भी स्थान मिला है और उनकी ध्वनियाँ आज भी उलगुलान के रूप में गूंजती हैं।

 

बिरसा मुंडा: राजस्थान के आदिवासी क्षेत्रों में श्रद्धांजलि
राजस्थान के आदिवासी क्षेत्रों में भी भगवान बिरसा मुंडा की पूजा की जाती है। उनकी जयंती पर विशेष कार्यक्रम आयोजित होते हैं और आदिवासी समुदाय उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने इस महत्वपूर्ण अवसर पर राज्यभर में आदिवासी समाज के अधिकारों और उनके योगदान को मान्यता देने के लिए विभिन्न योजनाओं की शुरुआत की है।

भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के अवसर पर आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रम केवल उनके योगदान को याद करने का एक तरीका नहीं हैं, बल्कि यह आदिवासी समुदाय के संघर्ष और उनके अधिकारों की मान्यता का प्रतीक हैं। उनके जीवन और संघर्ष की प्रेरणा से हम सभी को यह सीख मिलती है कि अपने अधिकारों के लिए हमेशा आवाज उठानी चाहिए और कभी भी किसी दबाव या शोषण के खिलाफ खड़ा होना चाहिए।

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