आरयू में प्रथम संस्कृत दिवस का समारोहपूर्वक आयेजन

Edited By Kailash Singh, Updated: 08 Aug, 2025 05:27 PM

first sanskrit day was celebrated with fervor at ru

राजस्थान विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के संयोजन में विश्वविद्यालय के इतिहास में प्रथम बार संस्कृत दिवस का समारोहपूर्वक आयोजन हुआ। इस अवसर पर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में संस्कृतज्ञों की भूमिका पर व्याख्यान तथा परिचर्चा रखी गयी।

 जयपुर। 8 अगस्त। राजस्थान विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के संयोजन में विश्वविद्यालय के इतिहास में प्रथम बार संस्कृत दिवस का समारोहपूर्वक आयोजन हुआ। इस अवसर पर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में संस्कृतज्ञों की भूमिका पर व्याख्यान तथा परिचर्चा रखी गयी। 

मुख्य वक्ता स्वनामधन्य संस्कृतज्ञ तथा मूर्धन्य साहित्यकार, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित प्रो. राधा वल्लभ त्रिपाठी रहे। प्रो. त्रिपाठी ने स्वतंत्रता आंदोलन तथा भारतीय नवजागरण में संस्कृत साहित्य तथा संस्कृतज्ञों की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने अपने वक्तव्य में बताया कि किस प्रकार कालिदास के शाकुंतलम, श्रीमद्भगवद्गीता, आदि के योरोपीय भाषा में अनुवाद से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में चेतना का संचार हुआ। प्रो. त्रिपाठी ने सातवलेकर, महर्षि अरविन्द, पंडिता क्षमा राव, राहुल सांकृत्यायन आदि संस्कृतज्ञों के योगदान को निरूपित किया।

समारोह के मुख्य अतिथि जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रामसेवक दुबे थे। प्रो. दुबे ने अपने वक्तव्य में संस्कृत विषय में नवाचार तथा रोजगार की संभावनाओं पर प्रकाश डाला। प्रो. दुबे ने वर्तमान युग में संस्कृत के महत्व तथा प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।

समारोह की अध्यक्षता कर रहीं राजस्थान विश्वविद्यालय की कुलगुरु प्रो. अल्पना कटेजा ने अपने वक्तव्य में संस्कृत विभाग को भविष्य में संस्कृत दिवस, गुरु पूर्णिमा जैसे आयोजन करते रहने के लिये संकल्पबद्ध करते हुए, विभाग द्वारा संस्कृत संभाषण पाठ्यक्रम आरम्भ करने की बात कही। प्रो. कटेजा ने वर्तमान तथा भविष्य की पीढ़ियों द्वारा संस्कृत तथा परंपरा के अवबोध की आवश्यकता पर बल दिया। प्रो. कटेजा द्वारा बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के आनंदमठ, वीर सावरकर की कृति कालापाणी,  जयपुर के साहित्यकार देवकीनंदन शर्मा के राष्ट्रभक्तपंचकम आदि कृतियों के हवाले से संस्कृत की स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका को रेखांकित किया गया। कुलगुरु ने अपने वक्तव्य में बल दिया कि संस्कृत जोकि अधिकांश भारतीय भाषाओं की जननी है वह कभी विलुप्त नही हो सकती, वह उन समस्त भाषाओं में सदैव अंतर्निहित रहेगी।

कार्यक्रम के आरंभ में राविवि की संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. ज्योत्स्ना वशिष्ठ द्वारा स्वागत भाषण, देते हुए विषय का परिचय दिया गया। प्रो. वशिष्ठ ने बताया कि किस प्रकार कुलगुरु प्रो. अल्पना कटेजा द्वारा इस कार्यक्रम की पहल की गई। संस्कृत विश्वविद्यालय के दर्शन तथा योग विभाग के अध्यक्ष शास्त्री कोसलेंद्र दास द्वारा स्वातंत्र्योत्तर भारत में संस्कृत शिक्षण के विकास को प्रस्तुत करते हुए संस्कृत दिवस के आयोजन के इतिहास पर प्रकाश डाला गया। कार्यक्रम में राजस्थान के अनेक प्रमुख संस्कृतज्ञ तथा विश्वविद्यालय शिक्षकों ने भाग लिया। इस अवसर पर प्रो. श्रीकृष्ण शर्मा, इस्राइल तेल अवीव विश्वविद्यालय के प्रो. डेनियल रावेह, प्रो. बीना अग्रवाल, प्रो. योगेश गुप्ता, प्रो. राजकुमार छाबड़ा, प्रो. रामसिंह चौहान, प्रो. सुनीता शर्मा, डॉ चन्द्रमणि चौहान, डॉ सुधीर शर्मा, डॉ मीता शर्मा, डॉ मोनिका जैन, प्रो. शम्भू कुमार झा, प्रो. देवेंद्र कुमार शर्मा, डॉ मनीष सिनसिनवार, डॉ आनंदो, आदि उपस्थित रहे। समारोह के अंत में राविवि के दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ अनुभव वार्ष्णेय ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।

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