Edited By Shruti Jha, Updated: 22 May, 2025 10:34 AM
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने हाल ही में आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जाति आधारित गणना शामिल करने का निर्णय लिया है। यह कदम भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ को दर्शाता है, जो सामाजिक न्याय की दिशा में एक नई पहल हो सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने हाल ही में आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जाति आधारित गणना शामिल करने का निर्णय लिया है। यह कदम भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ को दर्शाता है, जो सामाजिक न्याय की दिशा में एक नई पहल हो सकता है।
पार्श्वभूमि:
1931 के बाद से भारत में जाति आधारित जनगणना नहीं हुई है। हालांकि, 2011 में एक सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना की गई थी, लेकिन उसके परिणाम सार्वजनिक नहीं किए गए थे। हाल ही में बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों ने जाति आधारित सर्वेक्षण किए हैं, जिनके परिणामों ने राज्य की राजनीति में हलचल मचाई है।
मोदी सरकार का निर्णय:
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जाति आधारित आंकड़े शामिल किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि कुछ विपक्षी शासित राज्यों द्वारा किए गए जातिगत सर्वे पारदर्शी नहीं थे, जिससे समाज में संदेह उत्पन्न हुआ। इसलिए, जाति गणना को जनगणना में ही शामिल करना उचित समझा गया।
राजनीतिक परिप्रेक्ष्य:
यह निर्णय बिहार विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र लिया गया प्रतीत होता है, जहां जाति आधारित आंकड़े महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। विपक्षी दलों ने लंबे समय से जाति आधारित जनगणना की मांग की थी, और अब सरकार ने इसे स्वीकार कर लिया है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए इसे पिछड़े वर्गों के दबाव के कारण लिया गया कदम बताया। उन्होंने सरकार से जाति आधारित सर्वेक्षण की मांग की और अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की भी वकालत की।
जाति आधारित जनगणना का महत्व:
जाति आधारित जनगणना से सरकार को विभिन्न जातियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का सटीक आंकड़ा मिलेगा। इससे योजनाओं और नीतियों को अधिक प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकेगा, जिससे समाज में समानता और न्याय सुनिश्चित होगा।
निष्कर्ष:
मोदी सरकार का यह निर्णय एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक कदम है, जिसका प्रभाव आगामी चुनावों और सामाजिक न्याय की नीतियों पर पड़ेगा। यह कदम सरकार की सामाजिक न्याय की दिशा में एक सकारात्मक पहल हो सकता है, लेकिन इसके परिणामों पर निगाह रखना आवश्यक होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने हाल ही में आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जाति आधारित गणना शामिल करने का निर्णय लिया है। यह कदम भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ को दर्शाता है, जो सामाजिक न्याय की दिशा में एक नई पहल हो सकता है।
पार्श्वभूमि:
1931 के बाद से भारत में जाति आधारित जनगणना नहीं हुई है। हालांकि, 2011 में एक सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना की गई थी, लेकिन उसके परिणाम सार्वजनिक नहीं किए गए थे। हाल ही में बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों ने जाति आधारित सर्वेक्षण किए हैं, जिनके परिणामों ने राज्य की राजनीति में हलचल मचाई है।
मोदी सरकार का निर्णय:
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जाति आधारित आंकड़े शामिल किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि कुछ विपक्षी शासित राज्यों द्वारा किए गए जातिगत सर्वे पारदर्शी नहीं थे, जिससे समाज में संदेह उत्पन्न हुआ। इसलिए, जाति गणना को जनगणना में ही शामिल करना उचित समझा गया।
राजनीतिक परिप्रेक्ष्य:
यह निर्णय बिहार विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र लिया गया प्रतीत होता है, जहां जाति आधारित आंकड़े महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। विपक्षी दलों ने लंबे समय से जाति आधारित जनगणना की मांग की थी, और अब सरकार ने इसे स्वीकार कर लिया है।
विपक्ष की प्रतिक्रिया:
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए इसे पिछड़े वर्गों के दबाव के कारण लिया गया कदम बताया। उन्होंने सरकार से जाति आधारित सर्वेक्षण की मांग की और अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की भी वकालत की।
जाति आधारित जनगणना का महत्व:
जाति आधारित जनगणना से सरकार को विभिन्न जातियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का सटीक आंकड़ा मिलेगा। इससे योजनाओं और नीतियों को अधिक प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकेगा, जिससे समाज में समानता और न्याय सुनिश्चित होगा।
निष्कर्ष:
मोदी सरकार का यह निर्णय एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक कदम है, जिसका प्रभाव आगामी चुनावों और सामाजिक न्याय की नीतियों पर पड़ेगा। यह कदम सरकार की सामाजिक न्याय की दिशा में एक सकारात्मक पहल हो सकता है, लेकिन इसके परिणामों पर निगाह रखना आवश्यक होगा।