Edited By Kailash Singh, Updated: 04 May, 2025 12:20 PM

पेपर लीक की वजह से प्रदेश में पूरी तरह विवादों में आ चुकी थानेदारों भर्ती रद्द करने की मांग की कमान अब प्रदेश से क्षेत्रीय पार्टी के प्रधान एक चर्चित सांसद ने संभाल ली है। सांसद ने भर्ती परीक्षा रद्द करने और भर्ती बोर्ड को भंग करने की मांग को लेकर...
हनुमानगढ़, 4 मई 2025 । (बालकृष्ण थरेजा): पेपर लीक की वजह से प्रदेश में पूरी तरह विवादों में आ चुकी थानेदारों भर्ती रद्द करने की मांग की कमान अब प्रदेश से क्षेत्रीय पार्टी के प्रधान एक चर्चित सांसद ने संभाल ली है। सांसद ने भर्ती परीक्षा रद्द करने और भर्ती बोर्ड को भंग करने की मांग को लेकर राजधानी में बड़ा प्रदर्शन किया है। मीडिया के सामने उन्होंने इस भर्ती में पेपर लीक में सरकार के मंत्रियों तक के शामिल होने के खुले आरोप लगाए हैं। उन्होंने भर्ती परीक्षा रद्द न होने की भी दिलचस्प वजह बताई है। सांसद का आरोप है कि मुखिया के कार्यालय में बैठे अफसर और कई मंत्रियों की महिला मित्र भी इस भर्ती में थानेदार बन चुकी हैं इसलिए इस भर्ती को रद्द नहीं कर मुखिया तक को गुमराह किया जा रहा है। एक युवा मंत्री को पैसों के लेनदेन में शामिल बताकर सांसद ने नई बहस छेड़ दी है। वैसे सांसद कई बार इस भर्ती में महिला मित्रों की पैरवी का आरोप लगा चुके हैं। इन आरोपों पर अब सत्ता वाली पार्टी तथा सरकार के मंत्रियों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में सफाई भी दी है। भर्ती परीक्षा रद्द करने की मांग अब सांसद ने उठाई है। इससे पहले सरकार में बाबा के नाम से प्रसिद्ध एक मंत्री यह मांग उठा रहे थे। बाबा का विरोध लगता है रणनीतिक रूप से अब सांसद को शिफ्ट कर दिया गया है। बाबा ने भी सांसद की मांग को जायज ठहराया है। अब नई चर्चा के बाद भर्ती परीक्षा के आरोप भी रोचक हो रहे हैं। वैसे इस मामले में कई कार्रवाईया हुई हैं और नकल करने वाले थानेदारों की पहचान कर उन्हें बर्खास्त भी किया जा रहा है।
दर्द-ए- दिल का इजहार !
सत्ता वाली पार्टी से आने वाली प्रदेश की पूर्व मुखिया जब भी प्रदेश में किसी दौरे पर निकलती है तो अपने बयानों से नई चर्चा छेड़ देती हैं । एक जिले में पिछले हफ्ते धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने आईं पूर्व मुखिया ने शायराना अंदाज में दर्द बांटने वाला भाषण दिया। एक शेर में उन्होंने यह दर्द बयां किया। कुछ राजनीतिक जानकार इसे पूर्व मुखिया के दिल का दर्द बता रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि पूर्व मुखिया की पार्टी में समर्थकों की लंबी फेहरिस्त है। प्रदेश में उनकी फैन फॉलोइंग भी अच्छी है। इससे पहले भी पूर्व मुखिया दर्द का इजहार कर चुकी हैं ।उनके समर्थक कार्यक्रमों का आयोजन भी जोर-शोर से करवाते हैं इसलिए उन्हें नजरअंदाज किया जाना मुश्किल है। प्रदेश की राजधानी से लेकर दिल्ली तक यह मैसेज है कि पूर्व मुखिया को पार्टी स्तर पर संतुष्ट रखना जरूरी है नहीं तो आने वाले दिनों में संकट खड़ा हो सकता है। ताजा दौरे के बाद अब पार्टी में पूर्व मुखिया के राजनीतिक क्रियाकलापों की खूब चर्चा हो रही है।
दाग जो लोकतंत्र में फैशन बन गए हैं ?
राजनीति अब वो चादर बनती जा रही है जिस पर अगर धब्बे न हों तो लोग उसे नवसिखिया समझ बैठते हैं। किसी ज़माने में जनप्रतिनिधि होना चरित्र, सेवा और संकल्प का प्रतीक माना जाता था...अब ‘चार्जशीट’ और ‘सजा स्थगन’ को भी अनुभव मान लिया गया है। राजस्थान की रेत से उठती हवाओं में न जाने कितने जनप्रतिनिधियों की कहानियां तैर रही हैं। कोई न्यायालय की सीढ़ियां रोज चढ़ता है। कोई सजा के फैसले का इंतज़ार कर रहा है। दिलचस्प बात ये है कि ये सब बातें न तो शर्मिंदगी लाती हैं न ही इस्तीफे। उल्टा इससे कुछ को अतिरिक्त पहचान मिल जाती है। जैसे जनसेवा में "अपराधिक अनुभवी" होना भी एक योग्यता हो। आजकल सदन में बैठने वालों का परिचय कुछ यूं होता है...यह हैं माननीय...जिनकी सदन की उपस्थिति कम और अदालत की उपस्थिति ज़्यादा है। जनता अब भी चुप है, शायद इसलिए कि उसे उम्मीद है कोई तो आएगा जो सच में साफ़ सुथरी राजनीति करेगा। लेकिन होता ये है कि हर चुनाव में कुछ ऐसे चेहरे चुन लिए जाते हैं जिनके हाथ में फूल कम और पुराने प्रकरणों की फाइलें ज़्यादा होती हैं। मज़ेदार बात ये है कि जब किसी की सदस्यता पर तलवार लटकती है तो बहस शुरू हो जाती है। लोकतंत्र बचाना है या साथी? और इस बहस में न्याय व्यवस्था, संवैधानिक नैतिकता और जनता तीनों की आवाज़ कहीं दब जाती है। शायद समय आ गया है कि जनता अब नेताओं के ‘विकास कार्यों के साथ-साथ विचाराधीन मुकदमों की भी समीक्षा करने लगे। क्योंकि लोकतंत्र में दाग छुपाने की नहीं साफ करने की ज़िम्मेदारी होती है।