Edited By Kuldeep Kundara, Updated: 09 Jul, 2025 04:51 PM

हनुमानगढ़ । ( बालकृष्ण थरेजा ) : शहर की गीली दीवारों, दलदली सड़कों और जाम नालियों से उठती सड़ांध सिर्फ पानी की नहीं, प्रशासनिक निकम्मेपन की बदबू है। बीती रात की 98 एमएम बारिश ने हनुमानगढ़ को एक बार फिर उसके नकली विकास के आईने में झांकने पर मजबूर कर...
हनुमानगढ़ । ( बालकृष्ण थरेजा ) : शहर की गीली दीवारों, दलदली सड़कों और जाम नालियों से उठती सड़ांध सिर्फ पानी की नहीं, प्रशासनिक निकम्मेपन की बदबू है। बीती रात की 98 एमएम बारिश ने हनुमानगढ़ को एक बार फिर उसके नकली विकास के आईने में झांकने पर मजबूर कर दिया। झूठे नारों में लिपटा ‘मिनी चंडीगढ़’ का सपना तेज बारिश में बह गया और शहर का असली चेहरा सामने आ गया। बारिश में डूबता, घुटता, और खामोश शहर। अंडरपास बना तालाब, जाम में फंसे लोग। सुरेशिया अंडरपास में हालात किसी प्राकृतिक आपदा से कम नहीं रहे। ऊपर से ट्रेन गुजरती रही और नीचे पानी से लबालब अंडरपास दोनों ओर से वाहनों की कतारें और लोगों की चीख-पुकार का गवाह बना रहा। चूना फाटक, तिलक सर्कल, और पीडब्ल्यूडी कॉलोनी में यातायात पूरी तरह चरमरा गया। घंटों तक जाम में फंसे लोग यह सोचते रहे कि अगर यही विकास है, तो विनाश कितना भयावह होगा। हर मोहल्ला बना झील, गरीबों की जिंदगी बर्बादी के कगार पर- शहर के टाऊन की नई आबादी, मुखर्जी कॉलोनी, पंजाबी मोहल्ला, सेक्टर 6, वार्ड 51, और सतीपुरा डिस्कॉम ऑफिस के सामने हालात बदतर रहे। बरसात का पानी घरों में घुस गया। बच्चों की किताबें, महिलाओं के राशन के डिब्बे, बुज़ुर्गों की दवाइयां सब पानी में बह गए। लोग बाल्टी, डिब्बे और टूटे ड्रम लेकर अपने ही घरों से पानी निकालने की नाकाम कोशिश करते रहे। यह दृश्य किसी त्रासदी से कम नहीं था। लेकिन सबसे बड़ी त्रासदी यह रही कि जनता से वोट बटोर कर सत्ता के मजे लूटने वाले विभिन्न दलों के किसी भी नेता ने आकर नहीं पूछा।
50 करोड़ के नाले कहां हैं साहब ?
नगर परिषद के आंकड़ों में 50 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं नालों के निर्माण और सफाई पर। लेकिन सच्चाई यह है कि हर गली, हर कालोनी और हर सड़क नाले की तरह बह रही है।
तो पैसा कहां गया? कौन जिम्मेदार है? और क्यों नहीं होती कोई जांच ?
हर साल नालों की सफाई के नाम पर खानापूर्ति होती है। मशीनें दिखती हैं, फोटो खिंचती हैं, मगर नतीजा वही होता है। हर बारिश में शहर का डूबना। जब सिस्टम संवेदनहीन हो जाए, तो शहर अकेला पड़ जाता है: हनुमानगढ़ एक संवेदनहीन व्यवस्था का शिकार हो चुका है। अफसर कागज़ों में व्यस्त हैं, और जनप्रतिनिधि चुप्पी की चादर ओढ़े घरों में दुबके बैठे हैं। न कोई राहत शिविर, न कोई हेल्पलाइन, न कोई दिशा।
यह केवल बारिश नहीं, चेतावनी है
यह जलभराव कोई आकस्मिक आपदा नहीं थी। यह एक चेतावनी थी।उन अफसरों के लिए जो नालों की गहराई मापने की बजाय फ़ाइलों में गहराई खोजते हैं, और उन जनप्रतिनिधियों के लिए जो वोट लेकर ‘गायब’ हो जाते हैं।
पंजाब केसरी की जनता से अपील और प्रशासन से सवाल
क्या यही है वह चंडीगढ़, जिसकी बात हर भाषण में होती है? कब तक पानी में घुटते रहेंगे हम? कब तक बाल्टी लेकर अपने ही घर से पानी निकालना होगा? अब जनता को जवाब चाहिए...कागज़ पर नहीं, जमीन पर। हनुमानगढ़ अब केवल सहने वाला नहीं रहा। उसका गुस्सा सड़कों पर है, और आंखों में सवाल। अगर अब भी व्यवस्था नहीं जागी, तो अगली बारिश सिर्फ पानी नहीं लाएगी। आरोपों की बाढ़ लाएगी।