Edited By Kailash Singh, Updated: 27 Jun, 2025 07:18 PM
राजस्थान शिक्षक संघ राष्ट्रीय प्रदेश समिति के दो दिवसीय महाअधिवेशन का समापन शुक्रवार को हनुमानगढ़ जिले के गोगामेड़ी के गोरक्षधाम में हुआ। समापन सत्र में राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने शिक्षकों को राष्ट्रनिर्माण की रीढ़ बताते हुए कहा कि...
शिक्षा केवल डिग्री नहीं, राष्ट्रनिर्माण का माध्यम होनी चाहिए- राज्यपाल
हनुमानगढ़, 27 जून,(बालकृष्ण थरेजा): राजस्थान शिक्षक संघ राष्ट्रीय प्रदेश समिति के दो दिवसीय महाअधिवेशन का समापन शुक्रवार को हनुमानगढ़ जिले के गोगामेड़ी के गोरक्षधाम में हुआ। समापन सत्र में राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने शिक्षकों को राष्ट्रनिर्माण की रीढ़ बताते हुए कहा कि शिक्षा केवल बुद्धि नहीं, चरित्र गढ़ने का माध्यम होनी चाहिए। इस मौके पर राज्यपाल और शिक्षा मंत्री ने गुरु गोरखनाथ धाम और गोगाजी के दर्शन किए तथा पूजा अर्चना की।
राज्यपाल सिरसा के सड़क मार्ग से गोगामेड़ी पहुंचे तथा इससे पूर्व सिरसा में उन्होंने पूर्व राज्यपाल प्रोफेसर गणेशीलाल से भी मुलाकात की। राज्यपाल ने शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा कि 1835 की मैकाले शिक्षा नीति ने भारतीय शिक्षा की आत्मा को खत्म किया था, लेकिन अब राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 उस आत्मा को पुनः स्थापित कर रही है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 केवल पाठ्यक्रम का बदलाव नहीं है, बल्कि यह भारत की आत्मा को पुनर्जीवित करने का प्रयास है। उन्होंने बताया कि इस नीति के निर्माण में 400 कुलपति और 1000 से अधिक शिक्षाविदों ने दो वर्षों तक मंथन किया।
उन्होंने कहा कि भारत की गुरुकुल परंपरा में शिक्षा जीवन पद्धति थी, जहां छात्र को केवल विषय नहीं, जीवन जीना भी सिखाया जाता था। आज आवश्यकता है कि शिक्षक फिर से उसी परंपरा को जीवित करें। उन्होंने इस अवसर पर शुभांशु शुक्ल, राकेश शर्मा सहित हीरालाल शास्त्री, हरिभाऊ उपाध्याय, दुर्गाराम, डॉ भीमराव अंबेडकर, लाल गोविंद प्रभु, केशव माधो का जिक्र किया।
गुरुकुलों में पढ़ाई जाती थी 16 भाषाए
राज्यपाल बागड़े ने ब्रिटिश काल का जिक्र करते हुए कहा कि मैकाले ने शिक्षा का उद्देश्य ही बदल दिया था। उसने कहा था कि यदि भारत को लंबे समय तक गुलाम बनाना है, तो उसकी शिक्षा और इतिहास को ही बदल दो। हम उसी नीति में जकड़े हुए थे। उन्होंने कहा कि 1835 का भारत ऐसा था जहां कोई भिखारी नहीं था, गांवों में ताले नहीं होते थे, गुरुकुलों में 16 भाषाए पढ़ाई जाती थीं। आज हमें फिर उस स्वाभिमानी, आत्मनिर्भर शिक्षा पद्धति की ओर लौटना होगा। राज्यपाल ने कहा कि शिक्षक समाज का दर्पण है। उन्होंने प्राथमिक शिक्षकों को उच्चतम वेतन देने वाली जर्मनी की शिक्षा प्रणाली का उदाहरण देते हुए कहा कि शिक्षक को सबसे अधिक महत्व दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षक केवल नौकरी नहीं करता, वह समाज गढ़ता है। बच्चे को केवल नंबर नहीं, संस्कार देना शिक्षक का धर्म है।
शिक्षा मंत्री ने भी रखे विचार
शिक्षा एवं पंचायतीराज मंत्री मदन दिलावर ने अपने भावनात्मक और प्रखर संबोधन में कहा कि मूर्तिकार मिट्टी से राम और रावण दोनों बना सकता है, यह निर्णय शिक्षक के हाथ में होता है कि वह क्या बनाए। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने अब तक 35,000 से अधिक शिक्षकों की पदोन्नति, 30,000 से ज्यादा शिक्षकों को नियुक्तियां दी हैं, और 60,000 से 70,000 शिक्षकों की भर्तिया लंबित हैं। उन्होंने कहा कि स्थानांतरण और प्रमोशन दोनों एक साथ नहीं चल सकते। पूरा राजस्थान शिक्षक का कार्यक्षेत्र होना चाहिए। उन्होंने शिक्षा में नवाचार की ओर बढ़ते हुए बताया कि 225 माध्यमिक विद्यालयों को उच्च माध्यमिक में क्रमोन्नत किया गया है, स्टाफिंग पैटर्न लागू किया जा रहा है ताकि छात्रों के अनुपात के अनुसार शिक्षकों की नियुक्ति हो। शिक्षा मंत्री ने हर बच्चे से 10 पौधे लगाने और प्लास्टिक से मुक्ति का भी आह्वान किया। कार्यक्रम में शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष रमेश पुष्करणा, महंत श्री रूपनाथ, प्रांत विचारक विजय आनंद, अखिल भारतीय संगठन मंत्री महेंद्र कपूर, विधायक संजीव बेनीवाल, जिला कलेक्टर डॉ. खुशाल यादव, एसपी हरि शंकर सहित जनप्रतिनिधि, हजारों शिक्षक और पदाधिकारी उपस्थित रहे।