अतिक्रमण और प्रदूषण से खतरे में ऐतिहासिक गेपसागर झील

Edited By Kailash Singh, Updated: 03 Apr, 2025 12:30 PM

historic gapsagar lake in danger due to encroachment and pollution

डूंगरपुर की शान कही जाने वाली गेपसागर झील अतिक्रमण, जलमार्गों की रुकावट और कचरा डंपिंग के कारण बदहाली का शिकार हो रही है। 280 बीघा में फैली और 100 फीट गहरी यह झील अब सिकुड़ती जा रही है, जिससे इसका अस्तित्व खतरे में है।

डूंगरपुर, 3 अप्रैल (पंजाब केसरी): डूंगरपुर की शान कही जाने वाली गेपसागर झील अतिक्रमण, जलमार्गों की रुकावट और कचरा डंपिंग के कारण बदहाली का शिकार हो रही है। 280 बीघा में फैली और 100 फीट गहरी यह झील अब सिकुड़ती जा रही है, जिससे इसका अस्तित्व खतरे में है। प्रशासनिक उपेक्षा के चलते झील का स्वरूप बिगड़ गया है और यह कूड़ादान में तब्दील हो रही है। डूंगरपुर रियासत के 14वें महारावल गैपा रावल द्वारा विक्रम संवत 1485 में निर्मित इस झील के किनारों पर अवैध निर्माण बढ़ने से इसका आकार छोटा हो गया है। वहीं, जल आवक मार्गों पर अतिक्रमण से झील में पानी की आपूर्ति प्रभावित हो रही है, जिससे औसत बारिश के बावजूद पिछले 6 वर्षों से झील ओवरफ्लो नहीं हुई। झील की पाल और सीढ़ियां जहां ऐतिहासिक महत्व रखती हैं, वहीं पर्यटक स्थल बादल महल इसकी खूबसूरती को बढ़ाता है, लेकिन अतिक्रमण और कचरे के ढेर ने इसके सौंदर्य को धूमिल कर दिया है। नगर परिषद सभापति अमृत कलासुआ ने कहा कि झील के जल आवक मार्ग बिलड़ी ग्राम पंचायत में आते हैं, जिससे वे स्वीकृत निर्माण कार्यों की जानकारी नहीं रखते। दूसरी ओर, बिलड़ी पंचायत के सरपंच पति बद्रीलाल ने झील की बदहाली के लिए नगर परिषद को जिम्मेदार ठहराया। प्रशासनिक निकायों के इस आरोप-प्रत्यारोप के चलते झील का संरक्षण अधर में लटक गया है।
प्रवासी पक्षियों की संख्या घटी, जल प्रदूषण बढ़ा
कुछ साल पहले तक गेपसागर झील में हजारों प्रवासी पक्षी डेरा डालते थे, लेकिन पानी की कमी, प्रदूषण और अवैध मत्स्याखेट के कारण अब यहां पक्षियों की चहचहाहट सुनाई नहीं देती। जलस्तर गिरने से झील का तल उखड़ने लगा है, जिससे यह एक साधारण पोखर में बदल रही है। नगर परिषद और ग्राम पंचायत के रवैये को देखते हुए अब जिला प्रशासन को चाहिए कि संरक्षण से जुड़े सभी निकायों और विभागों के बीच समन्वय स्थापित कर जिम्मेदारी तय करे। ऐतिहासिक और पर्यटन दृष्टि से महत्वपूर्ण गेपसागर झील को बचाने के लिए ठोस योजना बनानी होगी, ताकि इसका सौंदर्य और वास्तविक स्वरूप लौट सके।

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