Edited By Kailash Singh, Updated: 12 Jul, 2025 05:09 PM

संसार में किसी वस्तु का जब श्रृंगार किया जाता है तो वह वस्तु आकर्षण का केंद्र बन जाती है। श्रद्धा उत्पन्न होने से व्यक्ति का अंतःकरण साफ होता है। उसके लिए संत समागम जरूरी है। व्यक्ति का सबसे बड़ा मेल उसका अहंकार है और अहंकार भक्ति में सबसे बड़ी बाधा...
रावण को ज्ञान का अभिमान और राम को अभिमान का ज्ञान - संत दिग्विजय राम
चित्तौड़गढ़, 12 जुलाई। संसार में किसी वस्तु का जब श्रृंगार किया जाता है तो वह वस्तु आकर्षण का केंद्र बन जाती है। श्रद्धा उत्पन्न होने से व्यक्ति का अंतःकरण साफ होता है। उसके लिए संत समागम जरूरी है। व्यक्ति का सबसे बड़ा मेल उसका अहंकार है और अहंकार भक्ति में सबसे बड़ी बाधा है। उक्त उद्गार रामस्नेही सम्प्रदाय के संत दिग्विजय राम जी ने शनिवार को बूंदी रोड़ स्थित रामद्वारा में आयोजित चातुर्मासिक सत्संग के दौरान धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। संत दिग्विजय रामजी ने कहा कि मन रूपी कपड़े का मेल केवल सत्संग से ही साफ हो सकता है। भगवान की कथा श्रवण करने से अंतःकरण का मेल साफ हो जाता है। व्यक्ति संसार में जिस चीज का अहंकार करता है वह चीज इस संसार में है ही नहीं। ईश्वर की इच्छा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता है। भगवान राम जब वनवास से आए तो मां कौशल्या ने कहा था कि हे राम तुमने रावण को मारा तो भगवान राम ने कहा कि माता मैंने रावण को नहीं मारा बल्कि उसके ‘‘मैं“ ने उस मारा था। यानी रावण को अपने ज्ञान का अभिमान था और भगवान राम को अभिमान का ज्ञान था। भगवान राम ने कभी जीवन में अभिमान नहीं किया था। जिस व्यक्ति में सब्र व धर्म है वही सबरी है। जिस दिन हमारे मन में सब्र आ जाएगा उस दिन ईश्वर स्वयं चलकर हमारे पास आएंगे। जीवन में कभी किसी भी वस्तु का अभिमान व्यक्ति को नहीं करना चाहिए। आदमी में ‘‘मैं “ का भाव कभी नहीं आना चाहिए। सत्ता, संपत्ति, सौंदर्य, रूप, यौवन, शरीर का अहंकार व्यक्ति को नहीं करना चाहिए। जिस दिन शरीर में चेतना समाप्त हो जाएगी उस दिन यह शरीर नाशवान हो जाता है। यही संसार की हकीकत है तो फिर इंसान घमंड किस बात का करता है। इस संसार में कुछ भी अपना नहीं है। ज्ञानी व अज्ञानी व्यक्ति को समझाया जा सकता है लेकिन अभिमानी व्यक्ति को समझाया नहीं जा सकता। अभियान के कारण ही आज घर परिवार समाज टूट रहे हैं। व्यक्ति के पतन का मुख्य कारण उसका अभिमान है। व्यक्ति को यदि अपने ज्ञान का अभिमान है तो भी उसको ईश्वर प्राप्त नहीं होता है। कथा सुनते वक्त तन मन लगाकर कथा सुनना चाहिए। यदि मन एकाग्र नहीं है तो कथा सुनने का कोई लाभ नहीं होता है। कथा श्रवण के साथ साथ कथा पर मनन भी करना चाहिए। इस मौके पर बड़ी संख्या में धर्मावलम्बि मौजूद रहे।