विकास का हरित मॉडल: बिना कटाई खेजड़ी के बीच बीकानेर में सोलर एनर्जी का उत्पादन

Edited By Kailash Singh, Updated: 29 Jul, 2025 12:47 PM

production of solar energy in bikaner without felling khejri trees

बीकानेर। एक ओर जहां बीकानेर संभाग में सोलर कंपनियों द्वारा सौर ऊर्जा परियोजनाओं के नाम पर पेड़ों का बेरहमी से सफाया किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर एक नवाचार के तहत तीन सोलर प्लांट्स ने पर्यावरण संरक्षण की मिसाल पेश की है। बीकानेर-छतरगढ़ मार्ग पर दो...

विकास का हरित मॉडल: बिना कटाई खेजड़ी के बीच बीकानेर में सोलर एनर्जी का उत्पादन

बीकानेर। एक ओर जहां बीकानेर संभाग में सोलर कंपनियों द्वारा सौर ऊर्जा परियोजनाओं के नाम पर पेड़ों का बेरहमी से सफाया किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर एक नवाचार के तहत तीन सोलर प्लांट्स  ने पर्यावरण संरक्षण की मिसाल पेश की है। बीकानेर-छतरगढ़ मार्ग पर  दो हजार एकड़ भूमि पर सोलर प्लांट स्थापित किया गया  है  लेकिन विशेष बात यह रही कि इस पूरी परियोजना के दौरान एक भी खेजड़ी का पेड़ नहीं काटा गया। कंपनी ने क्षेत्र में मौजूद 460 खेजड़ी के पेड़ों को सुरक्षित रखते हुए सौर प्लेटें इस तरह से स्थापित की हैं कि ऊर्जा उत्पादन में कोई व्यवधान नहीं हुआ।सोलर कंपनियां प्रायः यह तर्क देती हैं कि पेड़, विशेषकर खेजड़ी, प्लेटों की छाया में बाधा बनते हैं या उनकी पत्तियां प्लेटों पर गिरने से तकनीकी दिक्कत आती है। लेकिन इस प्लांट ने इन सभी दावों को पूरी तरह खारिज कर दिया। इनके द्वारा सौर प्लेटों की कतारों को इस प्रकार डिजाइन किया गया है कि एक भी खेजड़ी को हटाने की जरूरत नहीं पड़ी। सोलर प्लांट न सिर्फ पूरी तरह से चालू है, बल्कि हरे-भरे पेड़ों के बीच सोलर प्लेटें एक अनुपम दृश्य भी प्रस्तुत करती हैं। उल्लेखनीय है कि इस प्रकार के इल्जाम लगाते रहे हैं कि क्षेत्र में सक्रिय पेड़ माफिया, सोलर कंपनियों के साथ मिलकर खेजड़ी के पेड़ों की अवैध कटाई कर रहे हैं। जैसे ही कोई कंपनी ज़मीन खरीदती है, ये माफिया सक्रिय हो जाते हैं। एक पेड़ काटने के एवज में 5 से 10 हजार रुपये तक वसूले जाते हैं। खेजड़ी की लकड़ी धार्मिक आयोजनों, यज्ञ-हवन और फर्नीचर निर्माण में उपयोग की जाती है। इसकी बारीक लकड़ी हवन सामग्री बनाने वाली कंपनियों को बेची जाती है। एक खेजड़ी का पेड़ लकड़ी माफियाओं को हजारों से लेकर लाखों रुपये तक का मुनाफा दे जाता है। जबकि टाटा सोलर के नूरसर फांटा, बरसिंहसर और भानीपुरा स्थित तीनों प्लांट ऐसे हैं जहां एक भी वृक्ष नहीं काटा गया है। विशेष रूप से खेजड़ी को संरक्षित रखते हुए सौर प्लेटें स्थापित की गई हैं। वहीं, भानीपुरा के पास एक अन्य कंपनी द्वारा लगाए जा रहे सोलर प्लांट में 190 खेजड़ी के पेड़ों की कटाई एक दिन पहले ही की गई है। यह विरोधाभास दर्शाता है कि इच्छा शक्ति हो तो विकास के साथ पर्यावरण का संरक्षण भी संभव है। पर्यावरण प्रेमी शेरसिंह भाटी का कहना है कि खेजड़ी न केवल इस रेगिस्तानी क्षेत्र की पारिस्थितिकी का आधार है, बल्कि यह धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक विरासत का भी हिस्सा है। यह पेड़ भीषण गर्मी में भी हरा-भरा रहता है और शीतलता प्रदान करता है। इसकी पत्तियां पशु चारे के रूप में काम आती हैं और इसकी छांव में अन्य वनस्पतियां भी फलती-फूलती हैं। नूरसर फांटा से मोतीगढ़ के बीच स्थापित प्लांट में 460 खेजड़ी पूरी तरह संरक्षित हैं। ऐसे में यह मॉडल अन्य कंपनियों और सरकार के लिए एक उदाहरण होना चाहिए। जिला प्रशासन को भी चाहिए कि वे इलाके में कार्यरत 60-70 सोलर कंपनियों के प्रतिनिधियों को इस मॉडल से अवगत कराएं, ताकि विकास की दौड़ में पर्यावरण की कीमत न चुकानी पड़े। इस पहल ने साबित कर दिया है कि यदि नियत साफ हो और तकनीकी समझदारी से काम लिया जाए, तो विकास और पर्यावरण संरक्षण दोनों साथ चल सकते हैं। खेजड़ी जैसी पारिस्थितिक धरोहरों को बचाना न सिर्फ वर्तमान बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी जरूरी है।

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