Edited By Kailash Singh, Updated: 03 Aug, 2025 04:07 PM

राजस्थान के बारां जिले के प्राकृतिक छटा से भरपूर रमणीय, धार्मिक स्थल महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि तथा सीता के परित्याग उपरांत निर्वासनकाल की स्थली सीताबाड़ी के अस्तित्व पर संकट छा गया है। ढाई साल पूर्व सौंदर्यीकरण के नाम पर यहां स्थित ऐतिहासिक प्रमुख...
प्राकृतिक छटा से भरपूर है रमणीय, धार्मिक स्थल सीताबाड़ी, अब खो रहा अस्तित्व
बारां(सीताबाड़ी), 03 अगस्त (दिलीप शाह)। राजस्थान के बारां जिले के प्राकृतिक छटा से भरपूर रमणीय, धार्मिक स्थल महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि तथा सीता के परित्याग उपरांत निर्वासनकाल की स्थली सीताबाड़ी के अस्तित्व पर संकट छा गया है। ढाई साल पूर्व सौंदर्यीकरण के नाम पर यहां स्थित ऐतिहासिक प्रमुख सूरज कुंड को ही उजाड़ दिया गया, जिसका स्थानीय लोगों में गुस्सा है।
सूरज कुंड में स्नानार्थियों की थी काफी आस्था
ज्ञात रहें कि सीताबाड़ी स्थल पर पहले सूरज कुंड सहित सीता कुंड, लक्ष्मण कुंड, लवकुश कुंड समेत अन्य कुंड हुआ करते थे। लक्ष्मणकुंड के साथ ही सूरज कुंड में स्नानार्थियों की काफी आस्था थी। 5 फीट गहराई के सर्वाधिक सुंदर सूरज कुंड की प्राकृतिक जलधारा शीतलता के साथ ही मनोहारी भी थी। लेकिन सीता कुंड में पानी रीत जाने से वह खत्म हो गया। जबकि सौंदर्य के नाम पर सूर्य कुंड का अस्तित्व भी मिटा दिया गया। जिला मुख्यालय से कोई 45 किमी दूर केलवाड़ा में स्थित धार्मिक आस्था से परिपूर्ण महर्षि बाल्मिकी की तपोभूमि सीताबाड़ी धाम के मंदिरों तथा पवित्र प्राचीन कुंडों के सौंदर्यकरण के नाम पर इन्हें भव्यता प्रदान करने का सब्जबाग दिखाया गया था। जिसके तहत ऐतिहासिक सूरज कुंड का अस्तित्व मिटा कर प्राचीन स्थल को जमीजोद कर वहां दो कमरों के साथ एक हाल बना कर एक कोने में शिवलिंग स्थापित कर यह निर्माण भी अधूरा छोड़ दिया गया।
173 लाख 74 हजार की राशि हुई थी स्वीकृत
सूत्रानुसार पूर्ववर्ती राज्य सरकार के समय सहरिया जनजाति बाहुल्य शाहाबाद क्षेत्र में स्थित सीताबाड़ी के मंदिरों, पवित्र कुंडों व छतरियों के जीर्णोद्धार कराए जाने के साथ ही यात्रियों की सुविधा के लिए भव्य पब्लिक पार्क, ट्यूबवेल समेत विभिन्न तरह के कार्य करवाये जाने की योजना बनाकर इसके लिए 173 लाख 74 हजार रुपए की राशि स्वीकृत करवाई थी। शाहाबाद निर्माण विभाग के एक्सईएन बसंत गुप्ता ने बताया कि जुलाई 2023 में सीताबाड़ी में कार्य आरंभ हुआ जो जनवरी 2024 को पूरा करना था। स्वीकृत राशि में से 44 लाख रुपए कार्यों पर खर्च किए गए। इसके तहत 56.14 लाख सूरज कुंड पर तथा 46.59 लक्ष्मण कुंड पर खर्च होना था। अभियंता ने बताया कि निर्माण कार्य में सूरज कुंड कार्य, बाउंड्रीवाल, ट्यूबवेल समेत लक्ष्मण कुंड में टाइल्स वगैरह लगाई गई हैं। अब कार्य बंद है।
अस्तित्व के साथ छेड़छाड़ लोगों को नापसंद था
लंबे समय बाद पौने दो करोड़ का बजट स्वीकृत हुआ तो लोगों को लगा कि अब सीताबाड़ी की कायापलट से सूरत निखर जाएगी, लेकिन जब काम आरंभ हुआ तो वहां के अस्तित्व के साथ छेड़छाड़ आस्थावान लोगों को पसंद नहीं आया। कुछ लोगों ने सूरज कुंड के अस्तित्व को मिटाने पर विरोध भी किया, लेकिन अनसुना कर दिया गया। बतादे कि ऐतिहासिक सूरज कुंड में इतना साफ कांचदार पानी रहता था कि स्नानार्थी सुई या सिक्के डालकर पैंदे में पड़ा साफ सुई, सिक्का देखकर अठखेलियां किया करते थे। आज इसी कुंड को पत्थर मिट्टी से भर कर खत्म कर दिया गया है। यहां बनाना तो शिवालय था पर शिवलिंग को एक कोने में समेट कर रख दिया गया। कुंड का सिकुड़ा हुआ बाहरी मुख्य गेट व दीवार पर बनाए गए छोटे छोटे बेतरतीब आलिया विकास की कहानी स्वयं बयां कर रहे हैं। यह भी उल्लेखनीय हैं कि यहां विशेष स्नान पर्व के दौरान मध्यप्रदेश सहित दूर दूर से यात्री स्नान, दर्शन के लिए आते है। यहां की महत्ता को त्रेता में भगवान राम के वनवास से जोड़ कर भी देखा जाता है।
मान्यतानुसार सीता के निर्वासनकाल का रहा स्थान-
कहते हैं कि इस भूमि पर महर्षि बाल्मिकी ने तपस्या की थी। यही नहीं सीता माता ने भी पुत्र लव, कुश के साथ यहीं निवास किया था। वन आम्रवली से आच्छादित पेड़ों की ठंडी छांव, शीतल हवा, शुद्ध पेयजल तथा पवित्र कुंडों में स्नान से मिलने वाला पुण्य यहां की विशेषताएं थी। जो अब गायब होती जा रही है। मान्यतानुसार सीता माता ने निर्वासनकाल के दौरान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इसी स्थान पर लव कुश को जन्म दिया था। सहरिया जनजाति के लोकतीर्थ के रूप में यहां जेष्ठ कृष्णपक्ष की अमावस्या से मेला लगता है, जिसमें मप्र से भी दर्शनार्थी दंडवत करते आते हैं।