Edited By Kuldeep Kundara, Updated: 20 Jul, 2025 09:53 AM

राजस्थान की राजनीति में इन दिनों अगर किसी विधानसभा सीट को लेकर सबसे ज्यादा हलचल है, तो वह है बारां जिले की अंता विधानसभा सीट। एक समय सामान्य मानी जाने वाली यह सीट आज कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए ‘पॉलिटिकल टेस्ट लैब’ बन चुकी है। कारण है- बीजेपी...
राजस्थान की राजनीति में इन दिनों अगर किसी विधानसभा सीट को लेकर सबसे ज्यादा हलचल है, तो वह है बारां जिले की अंता विधानसभा सीट। एक समय सामान्य मानी जाने वाली यह सीट आज कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए ‘पॉलिटिकल टेस्ट लैब’ बन चुकी है। कारण है- बीजेपी विधायक कंवरलाल मीणा की सदस्यता रद्द होने के बाद खाली हुई सीट और पूर्व कांग्रेस नेता नरेश मीणा की संभावित एंट्री, जिसने पूरे मुकाबले को बहुकोणीय बना दिया है।
नरेश मीणा जो समरावता कांड के दौरान एसडीएम को थप्पड़ मारने के बाद सुर्खियों में आए, नरेश मीणा को 8 माह जेल में रहने के बाद जमानत पर रिहा हुआ अब किसी पार्टी के सदस्य नहीं हैं, लेकिन उनका जनाधार लगातार बढ़ता दिखाई दे रहा है। कभी कांग्रेस के मजबूत नेता रहे नरेश, अब खुद को जनता का प्रतिनिधि और स्वतंत्र राजनीतिक ध्रुव के रूप में पेश कर रहे हैं। उन पर कई विवाद भी लगे, लेकिन यह दिलचस्प है कि हर बार वो और मजबूत होकर उभरे। अंता के ग्रामीण इलाकों में उनकी पकड़ मजबूत मानी जाती है। खुले मंच से स्पष्ट बोलने की उनकी शैली जनता के बीच उन्हें ‘अपना नेता’ बनाती है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि अगर नरेश मैदान में उतरते हैं, तो मुकाबला BJP बनाम कांग्रेस नहीं, बल्कि BJP + कांग्रेस बनाम नरेश मीणा हो जाएगा। हालांकि जेल के बाहर आने के बाद नरेश मीणा सचिन पायलट, किरोडीलाल मीणा जैसे दिग्गज नेताओं पर आरोप लगा रहे है, लेकिन उसी के साथ नरेश मीणा को हनुमान बेनीवाल और राजेंद्र गुढ़ा और प्रहलाद गुंजल जैसे दिग्गज नेताओं का साथ भी मिल रहा है इस देखकर लगता है कि नरेश मीणा शायद अंता सीट से ताल ठोक सकते है, सूत्रों की माने तो नरेश मीणा को शायद बीजेपी से इस बार टिकट मिल सकता है, ऐसे में कांग्रेस पार्टी की मुश्किलें बढ़ सकती है, क्योंकि नरेश मीणा का अंता से एक पुराना नाता रहा है
पूर्व मंत्री और बारां-अटरू से विधायक प्रमोद जैन भाया का अंता में प्रभाव माना जाता है, लेकिन इस बार वह अब तक अंता को लेकर सार्वजनिक रूप से कुछ खास सक्रिय नहीं दिखे। फिर भी माना जा रहा है कि कांग्रेस की रणनीति में भाया फैक्टर अहम भूमिका में है। कांग्रेस को डर है कि अगर नरेश मीणा चुनाव लड़ते हैं, तो मीणा वोट बैंक में सीधी सेंधमारी हो सकती है, जो पार्टी के लिए नुकसानदायक होगा। इसलिए कांग्रेस अपने पारंपरिक वोटबैंक को बचाने के लिए डेमेज कंट्रोल में लगी है।
बीजेपी के वरिष्ठ नेता प्रहलाद गुंजल का नाम भी इस पूरे समीकरण में तेजी से तैर रहा है। अगर पार्टी उन पर भरोसा जताती है, तो अंता सीट पर प्रभावशाली और अनुभवी चेहरा उतर सकता है। गुंजल को कोटा संभाग में अच्छी पहचान मिली हुई है और वह कद्दावर ओबीसी नेता के तौर पर जाने जाते हैं। हालांकि, बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है कंवरलाल मीणा की सदस्यता रद्द होने से उपजा भरोसे का संकट, जिसे पार्टी हर हाल में पीछे छोड़ना चाहती है।
अंता का चुनाव अब त्रिकोणीय नहीं, बहुकोणीय होता दिख रहा है। कुछ क्षेत्रीय दल और निर्दलीय चेहरे इस चुनाव को ‘गोल्डन चांस’ मानकर तैयारी में जुटे हैं। यह भी माना जा रहा है कि जातीय समीकरणों के आधार पर मीणा, गूर्जर, ब्राह्मण और ओबीसी वोट बैंक को साधने की नई रणनीतियां बन रही हैं।
जनता की चुप्पी इस बार बहुत कुछ कह रही है। युवा रोजगार की मांग कर रहे हैं, किसान फसल और बिजली दरों को लेकर नाराज़ हैं, और महिलाएं महंगाई से त्रस्त हैं। अब देखना यह होगा कि कौन नेता इन वास्तविक मुद्दों पर खरा उतरता है, और कौन सिर्फ नारों से जनता को साधने की कोशिश करता है। अगले कुछ हफ्तों में कांग्रेस की पकड़, बीजेपी की लहर, नरेश मीणा की जनतावाद की राजनीति और तीसरी ताकतों की दावेदारी – सब कुछ एक बड़ी चुनावी पटकथा की तरह सामने आएगा। अब अंता सिर्फ एक सीट नहीं, बल्कि राजस्थान के आगामी राजनीतिक ट्रेंड्स का संकेतक बन चुका है।